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पंचतंत्र : दुष्ट सर्प और कौवे की कहानी | Dusht Sarp Aur Kauve ki Kahani in Hindi

सोमपुर नाम के एक जंगल में बेहद पुराना बरगद का पेड़ था, जिसमें एक कौआ और उसकी पत्नी रहते थे। दोनों पति-पत्नी बड़े खुश थे। 

एक दिन बरगद के पेड़ के एक खोखले तने पर एक जहरीला सांप आ गया। सांप को वह जगह अच्छी लगने लगी, तो वही रहने लगा। 

एक दिन कौवे की पत्नी ने कुछ अंडे दिए। सांप को जैसे ही पता चला उसने वो अंडे खाकर अपना पेट भर लिया। सांप हमेशा इसी तरह कौवे के अंडे खा लेता था।

कौआ और उसकी पत्नी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन है, जो उनके साथ ऐसा कर रहा है। एक दिन कौवा और उसकी पत्नी दाना चुग कर बाहर घोंसले में लौटे। तभी उन्होंने देखा कि एक सांप उनके अंडे पर झपट रहा है।

पति-पत्नी अंडे बचा तो नहीं पाए, लेकिन कौवे ने अपनी पत्नी से कहा, "देखो! अब हमें दुश्मन का पता चल गया है। भले ही हम इन्हें नहीं बचा पाए, लेकिन आगे अपने बच्चों को बचा लेंगे।"

"हम अपना घोंसला सबसे ऊंची टहनी में बनाएंगे। इससे अंडे सुरक्षित रहेंगे। वहां सांप नहीं आएगा, क्योंकि उसे चील का डर रहेगा। 

कौवे की बात उसकी पत्नी ने मान ली। उन्होंने ऊंची टहनी में घोंसला बना लिया। कुछ समय बाद उन्होंने वहां अंडे दिए और उससे बच्चे भी निकल आए। दोबारा कौवों का जोड़ा खुशी-खुशी रहने लगा।

सांप को लगा कि उसके डर से कौवे उस पेड़ से चले गए। रोज कौवे और उसकी पत्नी को उसी बरगद पेड़ में आते हुए देख कुछ दिनों बाद सांप समझ गया कि ये यही रहते हैं।

एक दिन सांप पेड़ पर उनका घोंसला ढूंढते हुए ऊंचाई पर पहुंच गया। वहां कौवे के तीन छोटे-छोटे बच्चे थे, उन्हें वो सांप तेजी से खा गया।

कौआ और उसकी पत्नी जब लौटी, तो घोंसले में बच्चों के छोटे-छोटे पंख बिखरे हुए देखकर दोनों रोने लगे। कौवे की पत्नी ने कहा, "इसी तरह हमारे बच्चे को यह हमेशा खा जाएगा। हमें यहां से कही दूर चले जाना चाहिए।"

कौआ अपनी से बोला, "डरकर कहीं भाग जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है। हमें अपने मित्र लोमड़ी के पास जाकर कोई उपाय पूछना चाहिए।"

दोनों लोमड़ी के पास गए और सांप की सारी हरकतों के बारे में बता दिया। लोमड़ी ने दोनों को हल्की आवाज में एक तरकीब बताई और कहा कि इसे कल ही अंजाम दे देना। 

अगले दिन कौवा सीधे उस सरोवर में पहुंचा जहां उस प्रदेश की राजकुमारी आती थी। वो अपनी सहेलियों के साथ वहां पानी में खेल रही थी। कौवे ने मौका देखकर राजकुमारी का सबसे पसंदीदा मोती का हार मुंह में दबा लिया।

जब राजकुमारी की सहेली ने उसे देखा, तो कौवा हल्की गति में आसमान में उड़ने लगा। राजकुमारी की सखी ने चिल्लाते हुए यह बात सिपाहियों को बताई। सिपाही कौवे का पीछा करते हुए बरगत के पेड़ के पास तक पहुंच गए।

कौवे ने बड़ी चालाकी से मोती का हार बरगद के उस तने पर डाल दिया, जहां सांप रहता था। माला को गिरता देख सिपाही उस तने की ओर बढ़ने लगे। 

सिपाहियों ने देखा कि वहां एक काला सांप है और उसी के पास मोती की माला गिरी हुई है। सारे सैनिक थोड़ा पीछे हुए और पेड़ के उस तने पर वार किया।

प्रहार होते ही सांप बौखलाते हुए बाहर निकला। मौका देखकर दूसरे सैनिकों ने उसे मार दिया और हार लेकर राजकुमारी को दे दिया।

इस तरह कौवे और उसकी पत्नी ने अपने दोस्त लोमड़ी की तरकीब की मदद सांप को मार दिया और अपने बच्चों की मौत का बदला ले लिया।

कहानी से सीख - बौखलाहट और दुख-दर्द में डूबे रहने से समस्या का समाधान नहीं निकलता है। इसके लिए सूझबूझ और अपनों की मदद लेनी चाहिए। 

नवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा | Navratri Katha in Hindi

एक समय की बात है, स्वर्गलोक में महिषासुर नामक दैत्य का आतंक फैला हुआ था। वह खुद को अमर करना चाहता था। इसके लिए उसने ब्रह्मदेव की कठिन तपस्या की। उसकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्म देवता ने उससे उसकी मनोकामना पूछी। इसपर दैत्य महिषासुर ने खुद के लिए अमर होने का वरदान मांगा।

तब ब्रह्मा जी ने कहा, "ये संभव नहीं है। इस संसार में हर किसी की मौत लिखी है। तुम कोई दूसरा वरदान मांग लो।" 

ब्रह्मा भगवान की बातें सुनकर दैत्य बोला, "कोई बात नहीं।" फिर आप मुझे यह आशीर्वाद दीजिए कि मेरी मौत न किसी देवता, न किसी राक्षस और न किसी इंसान द्वारा हो। मेरी मौत किसी महिला के द्वारा हो।" ब्रह्मा जी ने उसे वरदान पूरा होने का आशीर्वाद दिया और वहां से चले गए।

इसके बाद दैत्य महिषासुर ने अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया। यह देख सभी देवता भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा के पास पहुंचे और उस राक्षस का अंत करने की गुहार लगाई। इसके बाद तीनों देवता ने अपनी शक्ति से एक आदि शक्ति का निर्माण किया, जिसे दुर्गा का नाम दिया गया।

देवी दुर्गा जब महिषासुर से युद्ध करने गईं तो महिषासुर उन्हें देख मोहित हो गया। उसके मन में दुर्गा से विवाह करने की इच्छा हुई। 

उसने दुर्गा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। इस पर देवी ने कहा, "अगर तुम मुझसे युद्ध में जीत जाते हो तो मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार कर लूंगी।" 

देवी की शर्त सुनकर महिषासुर युद्ध के लिए राजी हो गया। दोनों के बीच यह लड़ाई 9 दिनों तक चली और अगले दिन यानी दसवें दिन देवी दुर्गा ने उसे मार दिया। तभी से यह नवरात्रि का त्योहार मनाया जाने लगा।

पंचतंत्र की कहानी : हाथी और गौरैया | Hathi Aur Goraiya in Hindi

सोमपुर के चौराहे पर एक पुराना पीपल का पेड़ था, उसपर एक गौरैया चिड़िया अपना घोंसला बनाकर पति गौरैया के साथ रहती थी। एक दिन गौरैया ने घोंसले में कुछ अंडे दिए। 

गौरैया को रोज अपने अंडों को सेकती थी। उसे उसने बच्चों के बाहर निकलने का बड़ा बेसब्री से इंतजार था। एक दिन अंड़ों को सेकते हुए गौरैया के पति ने उसे देखा। उसके मन में हुआ कि ये जबतक अंड़ों को सेक रही है, तबतक मैं खाने का कुछ इंतजाम करके आ जाता हूं। 

जैसे ही गौरैया का पति खाने लेने के लिए उड़ा वैसे ही एक पागल हाथी सोमपुर चौराहे की तरफ दौड़ते हुए बड़े। वो गुस्से में आसपास के सारे पेड़ तोड़ने लगा। उन्हीं पेड़ों में से एक वो पीपल का पेड़ भी था, जिसमें वो गौरैया रहती थी। 

हाथी उस पीपल के पेड़ को इतनी जोर से हिलाने लगा कि गौरैया का घोंसला गिर गया और गौरैया के सारे अंड़े फूट गए। अंडे से चूजों के निकलने का इंतजार कर रही गौरैया अब उनके फूटने का गम मनाने लगी। उसकी आंखें आंसू से भरी थीं। 

उसी समय गौरैया का पति वापस आया। उसने अपनी पत्नी को टूटे हुए अंड़ों के पास रोते हुए देखा। गौरैया ने अपने पति को हाथी के बारे में सबकुछ बता दिया। गुस्से में गौरैया के पति ने हाथी से बदला लेने की ठान ली।

गौरैया का पति अपने एक दोस्त के पास गया। वो कठफोड़वा नाम का पक्षी था। उसे गौरैया के पति ने अपने घोंसले और पत्नी की हालत सबकुछ बता दिया।

दोनों ने उस हाथी से बदला लेने की योजना बनाने की सोची। इस योजना में कठफोड़वा ने अपने दो दोस्त मधुमक्खी और मेंढक को भी शामिल कर लिया।

अपनी योजना के अनुसार, पहले मधुमक्खी उस हाथी के पास गई और उसके कान में गुनगुनाने लगी। हाथी को मधुमक्खी का संगीत अच्छा लगने लगा। हाथी आंखें बंद करके जहां खड़ा था वही लेट गया।

हाथी को आराम से लेटे हुए देखकर कठफोड़वा पक्षी ने हाथी की आंखें फोड़ दी। दर्द में हाथी करहाने लगा। उसके बाद मेंढक और उसके कुछ साथी थोड़ी दूर दलदल के पास से टर्र-टर्र करने लगे।

हाथी को लगा की मेंढक की आवाज आ रही है, तो हो सकता है कि पास में तलाब या नदी हो। इसी सोच के साथ हाथी मेंढक की आवाज वाली दिशा की तरफ बढ़ने लगा। हाथी की आंखें फूट चुकी थीं, इसलिए वो आगे अंदाजे से बढ़ रहा था और बढ़ते-बढ़ते तालाब में गिर गया। 

हाथी धीरे-धीरे दलदल में फंसते चला गया और थोड़ी ही देर में उसकी मौत गई। सभी दोस्तों का प्लान सफल हो गया और गौरैया के पति को बदला मिल गया

कहानी से सीख : कमजोर लोग भी एकजुट होकर ताकतवर लोगों को हराया जा सकता है।

हल षष्ठी व्रत कथा | Hal Sashti Vrat Katha in Hindi

प्राचीन समय में गाय-भैंस को चराने व पालने वाली एक ग्वालिन आसपास के गाँवों में दूध बेचती थी। गर्भावस्था में भी वह लगातार दूध बेचती रही। 

कुछ समय बाद उसका प्रसव नजदीक आया। फिर भी वह दूध बेचने के लिए गाँव चली जाती थी। उसके मन में होता था कि मैं अभी नहीं गई, तो दूध खराब हो जाएगा।


एक दिन कुछ ही दूर चलते ही उसे तेज़ पीड़ा होने लगी। वो बेर की झाड़ी के किनारे रुक गई। वहां उसने एक बेटे को जन्म दिया। जन्म देने के बाद उसने अपनी बेटी को पास के खेत में कुछ घास में लपेटकर रख दिया। उसके बाद वो दूध बेचने के लिए निकल गई। 


गाँव जाकर उस ग्वालिन ने गाय और भैंस के मिले हुए दूध को भैंस का दूध बताकर बेच दिया। पूरे गांव के लोगों को दूध बेचने के बाद वह बच्चे के पास लौटने लगी।


उधर खेत के पास एक किसान हल जोत रहा था। तभी बैल मचलकर दौड़ने लगा और हल का नुकीला हिस्सा बच्चे के पेट पर लग गया। किसान घबरा गया। उसने तुरंत बच्चे के पेट को कांटों से सील दिया और वहां से चला गया।


तभी ग्वालिन उस खेत में पहुंची, जहां उसने अपने बच्चे को घास में लपेटकर रखा था। अपने बच्चे को खून में लतपत देखकर उसके मन में हुआ कि आज षष्ठी व्रत के दिन मैंने गाय-भैंस के मिले हुए दूध को सिर्फ गाय का शुद्ध दूध कहकर बेचा है। मुझे अपने इसी झूठ की सजा मिली है।


ग्वालिन अपने इस झूठ का प्रायश्चित करने के लिए दोबारा गाँव चली गई। उसने सभी को बताया, “मैंने गाय और भैंस के मिश्रित दूध को भैंस का दूध बताकर सबको धोखा दिया है और व्रत भंग किया है। मुझे आप लोग माफ कर दीजिए।


सच्चे मन से ग्वालिन को माफी मांगते देख गांव वालों ने उसे माफ कर दिया। माफी मिलने के बाद जब ग्वालिन खेत पहुँची, तो उसने देखा कि उसका बेटा सुरक्षित खेल रहा है। उसके शरीर के घाव भी सूख चुके हैं।


कहानी से सीख : झूठ और फरेब का फल इंसान को किसी-न-किसी दुख के रूप में जरूर मिलता है। 


पंचतंत्र की कहानी : बंदर और लकड़ी का खूंटा | Bandar Aur Lakri Ka Khoonta in Hindi

सरोजनगर में लकड़ी से मंदिर बनाने का कार्य चल रहा था। मंदिर जल्दी बनाना था, इसलिए बहुत सारे मजदूर इस कार्य में लगे हुए थे। लकड़ी का काम करते समय दोपहर के खाने का समय हुआ। 

एक मजदूर ने लकड़ी को चिरने के लिए उसमें कीला फंसाकर चला गया, ताकि दोबारा आरी डालने में दिक्कत न हो। दूसरे मजदूर भी अपना काम छोड़कर एक घंटे के लिए भोजन करने चले गए। 

उसी समय कुछ बंदर वहां उछलते-कूदते हुए आए। उनका एक सरदार था, जिसने सभी बंदरों को शरारत करने से मना किया था। सारे बंदर तो पेड़ की तरफ चले गए, लेकिन एक बहुत ज्यादा शरारती बंदर था। वो आसपास की चीजें छेड़ने लगता था।

तभी उस बंदर ने अधचिरी लकड़ी देख ली। उसने आरी को उसपर रगड़ना शुरू किया। उससे किर्र-किर्र आवाज आने लगी। गुस्से में बंदर ने आरी को पटक दिया। 

उसके बाद उसने लकड़ी जिसमें अटकी थी उस कीले को निकालने की कोशिश करने लगा। दो पाटो में बंटा कीला, स्प्रिंग से अच्छे से जुड़ा हुआ था, उसे निकालना आसान नहीं था।

स्प्रिंग के कारण जब भी कीला थोड़ा हिलता-डुलता, तो उस बंदर को अपने बल पर बड़ा गुमान होता। ऐसा करते समय एक बार बंदर की पूछ उस कीले के बीच में आ गई। बंदर को पता ही नहीं चला था, इसलिए उसने कीले को सरकाने के लिए जोर से झटका मार दिया। 

कीले के बीच की लकड़ी निकल गई और सभी क्लिप जुड़ गई। इसी क्लिप के बीच में बंदर की पूछ फंस गई। बंदर जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

उसी समय मजदूर खाना खाकर लौटने लगे। उनसे खुद को बचाने के लिए बंदर भागने लगा, तभी उसकी पूछ टूट गई। 

कहानी से सीख - हद से ज्यादा शरारतें करने से खुद का ही नुकसान होता है। बड़े आपके भले के लिए चीजें बताते व समझाते हैं, उनकी सुन लेनी चाहिए।

तेनालीराम की कहानी : मनहूस कौन ? | Manhus Kaun in Hindi

एक दिन विजयनगर के महाराज कृष्णदेव राय को पता चला कि चेलाराम नामक व्यक्ति को जो भी देखता है उसका दिन खराब जाता है। 

कुछ लोग कहते थे कि जिस दिन चेलाराम का मुंह देख लेते हैं, तो उस दिन एक निवाला भी खाने को नहीं मिलता। महाराज कृष्णदेव राय को लगा कि इस बात के पीछे की सच्चाई जानना जरूरी है। 

एकदिन चेलाराम को लेकर फैली बातों की सच्चाई को परखने के लिए महाराज कृष्णदेव राय ने उसे अपने सामने वाले कमरे में रुकने के लिए बुलाया।

राजा से राजमहल में एक दिन रुकने का न्योता मिलने से चेलाराम खुश हो गया। वो राजमहल के कक्ष में पहुंचा। उसके बाद उसने आराम से बैठकर राजसी भोग खाया।

उसी रात महाराज कृष्णदेव राय की नींद आधीरात के बाद खुली। उन्होंने जैसे ही अपने कमरे के बाहर देखा, तो उन्हें चेलाराम का चेहरा दिखा। 

संयोग ऐसा हुआ कि अगले दिन महाराज कृष्णदेव राय को दिनभर खाने के भोजन नहीं मिला। महाराज को लग गया कि चेलाराम को लेकर होने वाली बातें गलत नहीं थी। गुस्से में उन्होंने चेलाराम को फांसी की सजा सुना दी।

महाराज का आदेश सुनकर चेलाराम की सांसें अटक गई। वो परेशान हो गया। वो सीधे तेनालीराम के पास गया और फांसी की सजा की बताई।

चेलाराम की परेशानी सुनकर तेनालीराम ने कहा कि तुम अब वही करना जो मैं करने को कहूंगा। चेलाराम ने इस बात पर हामी भर दी।

फिर तेनालीराम ने कहा, "कल जिस समय तुमसे अंतिम इच्छा के बारे में पूछा जाए, तो प्रजा के सामने अपनी बातें रखने की बात कहना।" 

चेलाराम ने ऐसा ही किया। चेलाराम की इच्छा के अनुसार राजा ने सभा बुलवाई। चेलाराम ने तेनालीराम के द्वारा बताए अनुसार सभी लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "मुझे कहा जाता है कि मेरी शक्ल देखने से दिनभर भूखा रहना पड़ता है, लेकिन मैं कहता हूं कि महाराज की शक्ल देखने वाले को मृत्यु दण्ड मिलता है।"

चेलाराम की बातें सुनकर महाराज ने एकदम फांसी रुकवा दी और पूछा, "तुम ये सब क्या बोल रहे हो और किसके कहने पर?

चेलाराम कहने लगा, ”तेनालीराम के अलावा कोई  दूसरा मेरी मदद करने के लिए आगे नहीं आया।”

महाराज कृष्णदेव राय एकबार फिर तेनालीराम से प्रसन्न हो गए।

कहानी से सीख - सही सुझाव को समय रहते स्वीकार कर लेना चाहिए। जैसे चेलाराम ने तेनालीराम की बात मानकर अपनी जान बचा ली।

तेनालीराम की कहानी : ब्राह्मण किसकी पूजा करे | Brahmin Kiski Pooja Kare

एक दिन विजयनगर के महाराज कृष्णदेव राय ने राजदरबार में कहा ‘‘आज सभा में किसी तरह का कार्य नहीं है।  क्या आप योग्य व बुद्धिमान लोग कोई विषय बता सकते हैं, जिसपर चर्चा की जाए।

तेनालीराम अपने स्थान से उठे और बोले, "महाराज! आप ही किसी विषय को सूझाएं, तो बेहतर रहेगा।"

कुछ देर सोचने के बाद महाराज कृष्णदेव राय ने कहा, "आप लोगों को पता ही होगा कि क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तीनों वर्ण वाले ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। आखिर क्यों?"

राजदरबार के मंत्रियों को महाराज कृष्णदेव राय का सवाल एकदम सरल लगा। एक मंत्री बोला, "महाराज, ब्राह्मण लोग गाय को पवित्र मानते हैं और गाय कामधेनु का प्रतिक रही है। ऐसे में ब्राह्मण वर्ण को सर्वश्रेष्ठ मानना गलत नहीं है।"

राजदरबार में मौजूद सभी ने मंत्री की बात पर सहमती जताई। किसी को आपत्ति न होने पर महाराज ने कहा, "क्या तेनालीराम की कोई अलग राय है या इस बात से सहमत हो?" 

तेनालीराम ने कहा, "मैं इस जवाब से पूरी तरह सहमत नहीं हूं। मेरी राय कुछ अलग है।"

तेनाली ने आगे बोला,  "महाराज गाय को सभी लोग पवित्र मानते हैं। सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं। यहां तक की देवता भी गाय को पवित्र मानते हैं। मेरी इस राय से विद्वान लोग भी सहमत ही होंगे। आप पूछ लीजिए।"

महाराज ने फिर सबसे कहा कि मेरे एक सवाल का जवाब दो कि अगर ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ और पूजनीय माना जाता है, तो उनसे श्रेष्ठ कौन है? ब्राह्मण इतने ही श्रेष्ठ हैं, तो वो चमडे़ से बने जूते-चप्पल क्यों पहनते हैं?"

सभी दरबार के लोग इस बात का जवाब नहीं दे पाए। उनके दिमाग में कोई स्पष्ट जवाब ही नहीं आ रहा था। सभी की चुप्पी सुनकर महाराज ने घोषणा कर दी कि जो भी मुझे संतोषजनक जवाब देगा मैं उसे एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दूंगा।

कुछ देर सोचने के बाद तेनालीराम ने कहा, "हां, यह बात सही है कि ब्राह्मण लोग चमड़े के जूते पहनते हैं। आपको तो पता ही है कि ब्राह्मण मंदिर जाते हैं और तीर्थ जाते हैं। कई तरह के धार्मिक कार्य करते हैं। इसी वजह से कहा जाता है कि ब्राह्मण के पैर पवित्र और मोक्ष के द्वार जैसे होते हैं।"

महाराज ने दरबार में बैठे विद्वानों से इस बात की पुष्टि करवाई। सभी विद्वान तेनाली की इस बात से सेहमत थे।

विद्वानों की सहमती के बाद तेनालीराम आगे कहने लगे, "ब्राह्मण के पैर पवित्र माने जाते हैं, इसलिए वो पशु के खाल से बने हुए जूते पहनकर उन्हें मोक्ष के मार्ग तक पहुंचाते हैं। दूसरा - ब्राह्मण ही नहीं बल्कि सभी के लिए भगवान ही पूज्य हैं।"  

महाराज कृष्णदेव राय ने कहा, चमड़े के जूते पहनना किसी भी कारण से सही नहीं हो सकता, क्योंकि वो जानवरों की छाल से बनता है। यह गलता है।

फिर भी तेनालीराम तुमने चतुराई भरा जवाब देने का साहस दिखाया। इसी वजह से मैं तुम्हें ईनाम दूंगा।

कहानी से सीख - साहस और बुद्धि दोनों की हमेशा सरहाना होती है।

तेनालीराम की कहानी : जादूगर का घमंड | Jadugar Ka Ghamand

महाराज कृष्णदेव राय के राजदरबार में एक दिन जादूगर आया। उसने राजा की अनुमति लेकर बहुत से हैरान करने वाले जादू के करतब दिखाए। राजदरबार के सभी लोग जादू देखकर खुश हुए। 

जादू से राजा भी बड़े प्रभावित थे। उन्होंने जादूगर को सोने के सिक्के और कुछ उपहार दिए। समय के साथ उस जादूगर को अपनी कला पर बहुत ज्यादा घमंड होने लगा। वो घमंड में सभी जादूगर को चुनौती देता था। 

एक दिन जादूगर ने राजसभी में ही सभी लोगों से पूछा, "क्या आप लोगों में से मुझे कोई चुनौती दे सकता है?" 

तेनालीराम ने जादूगर की चुनौती और घमंड के चर्चे पहले भी सुने थे। उनके मन में हुआ कि इसके घमंड को तोड़ने का समय आ गया है।

अपनी कुर्सी से उठकर तेनालीराम ने कहा, "मैं तुम्हें चुनौती देना चाहता हूं।"

जादूगर अपने अहंकार में चूर था, इसलिए उसने तुरंत ही चुनौती को स्वीकार कर लिया। वो बोला, "मैं अपने करतब दिखाने में इतना माहिर हूं कि किसी भी चुनौती को स्वीकार कर सकता हूं।"

तेनालीराम ने रसोइये को मिर्ची पाउडर लाने के लिए कहा। मिर्च को तेनालीराम ने अपनी आंखों को बंद करके अपने शरीर पर छिड़क लिया। उसके बाद अपने शरीर से मिर्च को झटक कर तेनालीराम ने अपनी आंखें खोली। 

ऐसा करने के बाद तेनालीराम ने कहा, "मैंने ये आसान करतब किया है।"

तुम तो जादुगर हो, अब तुम यही करतब खुली आंखों से करके दिखाओ, तब मैं मानूंगा कि तुमने बेहतर कोई नहीं है।

घमंड में चूर जादूगर को समझ आ गया कि वो कितना अहंकारी हो गया था। उसने सभा में मौजूद सभी लोगों से माफी मांगी।

राजमहल के लोग और महाराज सभी तेनालीराम की बुद्धिमत्ता से खुश हो गए। 

कहानी से सीख - अपनी कला पर घमंड करके किसी दूसरे को कम नहीं समझना चाहिए।

तेनालीराम की कहानी: कौवों की गिनती | Counting of Crows in Hindi

विजयनगर के महाराज कृष्णदेव राय हमेशा तेनालीराम से ऐसे सवाल पूछते थे, जिसका जवाब कोई और नहीं दे पाता था। उन्हें तेनाली के जवाब सुनने में बड़ा आनंद आता था, क्योंकि उनके जवाब के बाद सब चकित रह जाते थे।

एक दिन महाराज को तेनाली से कुछ अजीब सवाल पूछने का मन हुआ। उन्होंने तेनालीराम को राजदरबार में बुलाया। राजा ने पूछा, "तेनाली क्या तुम बता सकते हो कि हमारे राज्य में कुल कितने कौवे होंगे।"

तेनालीराम बोले, "जी महाराज! मैं आपके इस सवाल का बिल्कुल जवाब दे सकता है। 

महाराज कृष्णदेव राय ने कहा, "अगर तुमने गलत जवाब दिया, तो मैं तुम्हें मौत की सजा सुना दूंगा।"

तेनालीराम बोले, "आप भरोसा रखिए, मुझे दो दिन का वक्त दीजिए। मैं कौवों की एकदम सही संख्या बताऊंगा। अगर आपको गलत लगे, तो आप मुझे मृत्यु दण्ड दे दीजिएगा। "

तेनाली से जलने वाले राजमहल के मंत्री व अन्य लोग खुश हो गए। उन्हें लगा कि राजा के सवाल में तनाली फंस गया है और अब इसे कभी भी सजा हो सकती है।

दो दिन के बाद महाराज ने तेनाली को जवाब देने के लिए कहा। तेनालीराम बोले, "पूरे राज्य में कौवे की संख्या 1 लाख 20 हजार पांच सौ पचास है। 

महाराज ने हैरानी से पूछा, "क्या इतने सारे कौवे हैं यहां?

तेनाली ने जवाब दिया, "आपको विश्वास नहीं होता है, तो आप किसी दूसरे से भी कौवे की संख्या को गिनवा सकते हैं। 

महाराज बोले, "अगर गिनती कम-या-ज्यादा हुई तो?"

तेनालीराम ने कहा, "ऐसा नहीं हो सकता। अगर हुआ था तो इसका मतलब यही होगा कि कुछ कौवे दूसरे राज्य से यहां घूमने आए हैं या कुछ हमारे राज्य से दूसरे राज्य दोस्त, रिश्तेदारों से मिलने गए हैं। इस स्थिति के अलावा किसी स्थिति में कौवो की संख्या कम-या-ज्यादा नहीं हो सकती है।" 

तेनालीराम का जवाब सुनकर महाराज लाजवाब हो गए। तेनालीराम के विरोधी भी सोचने लगे कि इसका दिमाग, तो काफी ज्यादा चलता है। 

कहानी से सीख - बुद्धि से हर मुश्किल का हल निकलता है और हर सवाल का जवाब मिल जाता है। 

पंचतंत्र की कहानी मूर्ख मित्र | Moorkh Mitra in Hindi

महीमपुर राजा ने अपने राजमहल में एक बंदर को सेवक के पद पर रख रखा था। राजा को उस बंदर पर इतना भरोसा था कि वो उसे सबसे ज्यादा विश्वासपात्र मानता था। 

राजा ने बंदर को पूरे राजमहल और राजदरबार में बिना किसी रोक-टोक के आने-जाने की इजाजत दे रखी थी। बंदर राजमहल में राजा के सारे काम करता और इधर-उधर अपनी मर्जी से घूमता था।

एक दिन राजा अपने कमरे में सो रहा था। गर्मी का मौसम था, इसलिए बंदर से सोझा कि राजा को पंखा कर देता हूं। वो बैठकर उन्हें पंखा झेलना रहा। कुछ ही देर बाद उस कमरे में एक मक्खी आ गई। बंदर उसे भगाने की कोशिश करता है, लेकिन मक्खी सीधे राजा की छाती पर बैठ गई । 

बंदर ने मक्खी को पंखे की मदद से बार-बार हटाने की कोशिश की, लेकिन वो कुछ देर के लिए भागती और दोबारा राजा की छाती पर आकर बैठ जाती। मक्खी को बार-बार ऐसा करते हुए देखकर बंदर को काफी गुस्सा आ गया। 

पंखे से मक्खी नहीं उड़ रही है, यह सोचकर बंदर ने हाथ में तलवार उठा ली। दोबारा जब मक्खी राजा की छाती पर बैठी, तो बंदर ने तलवार से प्रहार कर दिया। तलवार को देखकर मक्खी उड़ गई और राजा का शरीर दो टुकड़े में बट गया।

कहानी से सीख - मूर्ख की मित्रता और मूर्ख को पात्र समझना दोनों ही बेवकूफी है। इससे अच्छा किसी विद्वान्‌ को शत्रु बनान है। 

हिम्मत दास की कथा | Himmat Das Ki Katha in Hindi

मध्य प्रदेश के एक गाँव बराय में बांके बिहारी का एक बड़ा भक्त हिम्मत दास रहता था। वह रोज 15 किलोमीटर चलकर कीर्तन करते हुए उनके दर्शन करने जाता था। 

एक दिन हिम्मत दास अपने कीर्तन का चिमटा बजाते हुए बांके बिहारी जी के दर्शन करने जा रहा था। तभी 4 चोरों ने उन्हें रोक दिया और पैसे मांगने लगे।


हिम्मत दास ने कहा कि मेरे पास कोई पैसा नहीं है। पैसे और कोई दूसरा सामान नहीं था, इसलिए चोरों ने हिम्मतदास का कीर्तन करने वाला चिमटा छीन लिया।


चिमटा छीनकर चोर जाने लगे। तभी सभी चोरों को दिखना बंद हो गया। चोर किसी तरह हिम्मत दास के पास दोबारा पहुंचे और कहा कि आप अपना चिमटा वापस ले लीजिए।


हिम्मत दास को समझ नहीं आया कि वो चोर चिमटा लेकर वापस क्यों आ गए। तभी हिम्मत दास को पता चला कि सभी चोर अँधे हो रखे हैं। 


हिम्मत दास को बहुत दुख हुआ। वो बोला, हे भगवान! इन्हें इतना बड़ा दण्ड मत दो। तभी उनकी आँखों की रोशनी लौट आई। 


चोरों के कारण हिम्मत दास को मंदिर पहुँचने में देर हो गई। मंदिर में आरती हो चुकी थी, इसलिए मंदिर के कपाट बंद हो गए।


बंद मंदिर के पास बैठकर हिम्मत दास बोला, “आज आपके दर्शन के बिना मैं खाना कैसे खाऊँगा?”


तभी मूर्ति से स्वयं भगवान निकलकर हिम्मत के पास दर्शन देने आ गए और उसे खाना खिलाया। भगवान ने कहा, "मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं, इसलिए मैं तुम्हें भूखा सोने नहीं दे सकता हूं।


मंदिर के महंत ने यह चमत्कार देखकर हिम्मत दास को मंदिर में ही रहकर संतों की सेवा करने का निवेदन किया। 


मंदिर में अधिक साधु आते थे, इसलिए पैसे कम होने पर हिम्मत दास एक सेठ से उधार ले लेता था। 


एक दिन संतों की बड़ी मंडली मंदिर पहुँची। हिम्मत दास उनके भोजन के लिए राशन लेने उसी सेठ के पास गया। 


सेठ ने कहा, “पहले तुम बकाया चुकाओ, फिर सामान लेकर जाना।”


पैसे तो थे नहीं इसलिए वह अपनी पत्नी के पास गया। तुरंत पत्नी ने अपनी नाक की नथ निकालकर हिम्मत दास को दे दी। 


नथ गिरवी रखकर वह सामान लाया और साधुओं को भोजन करा दिया।


हिम्मत दास की श्रद्धा देखकर भगवान ने सेठ के पैसे चुका दिए और नथ ले जाकर उसके घर में रख दी।


जब उसने घर में नथ देखी, तो वह तुरंत सेठ के पास गया और पूछा, वह नथ कौन ले गया?


सेठ बोला, “तुम ही तो आए थे और पैसे चुकाकर नथ ले गए।”


भगवान का धन्यवाद करते हुए वह मंदिर चला गया।


कहानी से सीख - हिम्मत दास की कथा से यह सीख मिलती है कि निस्वार्थ भक्ति करने वालों को भगवान दर्शन भी देते हैं और उनके दुखों को भी हरते हैं।

राजा का उत्तराधिकारी कौन ? | Story Of The King And The Successor In Hindi

सालों पहले तुगलकनगर में प्रताप राज सिंह राजा का राज चलता था। वह प्रजा की सेवा में विश्वास रखता था और बेहद साहसी था। राजा के शासन से उनकी प्रजा बड़ी खुश रहती थी। 


राजा की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वो सोचते थे कि आखिर मेरे बाद प्रजा के बारे में सोचने वाला कौन होगा। किसी ऐसे इंसान को उत्तराधिकारी बनाना होगा, जो प्रजा के हित में ही सोचे। 


बहुत दिनों से राजा अपने राज्य के युवकों के व्यवहार पर गौर कर रहे थे। सबपर ध्यान देने के बाद राजा को दो-चार  युवक उत्तराधिकारी बनने लायक लगे। 


राजा प्रताप राज सिंह ने उन सभी लड़कों को अपने राजदरबार में बुलाया। उन्होंने कहा, “मुझे लगता कि आप लोगों में इस राज्य का उत्तराधिकारी बनने की क्षमता है। अब आपको साबित करना होगा कि आप कितने लायक हैं। इसके लिए मैं एक परीक्षा लूंगा। इसमें उत्तीर्ण होने वाले को मैं उत्तराधिकारी घोषित करुंगा।” 

 राजा का उत्तराधिकारी कौन ? | Story Of The King And The Successor In Hindi


इतना कहने के बाद राजा ने सभी लड़कों को एक-एक बीज दिया और गमले में लगाना। उसके बाद चार महीने जब बीत जाएं, तब अपना-अपना गमला लेकर आना। उस गमले को देखकर ही मैं तय करुंगा कि कौन उत्तराधिकारी बनेगा।  


उन लड़को को लग रहा था कि राजा कोई कड़ी परीक्षा लेंगे। मगर गमले में बीज बोना तो आसान ही है, यही सोचकर सभी अपने घर चले गए। 


चार महीने बीतते ही गमले के बीज से पौधे आने लगे। मगर एक लड़ा था क्षितिज, जिसके गमले में पौधा ही नहीं आया। क्षितिज परेशान होने लगा, क्योंकि दूसरे लड़कों के गमले में पौधे बढ़ रहे थे।


क्षितिज ने हार नहीं मानी। उसे लगा कि शायद पौधा आने में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा। वो अपने गमले की देखभाल करता ही रहता था।


होते-होते पूरे चार महीने बीत गए। कुछ के गमले में फूल आ गए और कुछ के गमले में फल लगने लगे। क्षितिज का गमला खाली का खाली ही था।


क्षितिज अपनी मां के पास गया और कहा कि आज राजा के पास जाने का दिन है। सभी लड़कों के गमले हरे-भरे हैं और मेरा गमला खाली। ऐसे में मैं क्या करूं? मैं खाली गमला लेकर कैसे जा सकता हूं? 


लोगों को भरोसा ही नहीं होगा कि मैंने इस गमले का ख्याल रखा था। कौन मानेगा कि इस गमले को मैंने बराबर पानी और खाद सबकुछ दिया था। 


मां बोली, बेटा चाहे तुम्हारा गमला जैसा भी हो, तुम्हें राजा के पास जाना ही चाहिए। तुमने मेहनत की, वो सबसे ज्यादा जरूरी है। अब तुम्हारी जिम्मदारी है कि तुम राजा को सच बताओ और उनका गमला उन्हें वापस कर आओ।


क्षितिज अपनी मां की बातें समझ गया। वो अपना खाली गमला लेकर राजा के पास पहुंच गया। दूसरे लड़के भी वहां गए। क्षितिज का गमला देखकर सब हंसने लगे।


राजा ने सबका गमला देखा। पहले सबके हरे-भरे गमले देखे और आखिर में राजा ने वो एक खाली गमला देखा। 


राजा ने पूछा, “यह खाली गमला किसका है?” 


क्षितिज डरते हुए आंखें झुकाकर बोला, “यह मेरा गमला है। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन इसमें पौधा आया ही नहीं।” राजा ने उसे अपने साथ आने के लिए कहा। क्षितिज और ज्यादा डर गया। कांपते हुए वो राजा के साथ आगे बढ़ने लगा। 


राजा उसे सिंहासन की तरफ ले गए और कहा, “तुम ही इस सिंहासन के असली हकदार हो। तुम्हें ही मैं अपना उत्तराधिकारी घोषित करुंगा।” राजभवन में मौजूद सभी लोग हैरान हो गए और हैरानी से राजा की तरफ देखने लगे। 


राजा ने कहा, “आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि मैंने इन सबको ऐसे बीज दिए थे, जिसमें पौधा आ ही नहीं सकता था। खाली गमला लाकर क्षितिज ने यह साबित कर दिया कि वो इन सबमें सबसे ईमानदार है। इसी में राजा के गुण हैं।” 


हरे-भरे गमले लेकर आए लड़कों ने शर्म से अपनी गर्दन झुका ली। उसी समय राजा ने अपने सिंहासन पर बैठकर पूरे विधि-विधान से क्षितिज को अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 


कहानी से सीख : चाहे परिस्थिति जैसी भी हो, इंसान को सच का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा | Devutthana Ekadashi Vrat Katha in Hindi

सालों पहले एक राज्य में पूरी प्रजा एकादशी व्रत करती थी। राज्य के लोगों के साथ पशुओं को भी एकादशी व्रत कराया जाता था।

एक दिन राजा के पास एक व्यक्ति काम माँगने आया। राजा बोले, “मैं तुम्हें काम दूँगा, लेकिन हमारी प्रजा एकादशी व्रत करती है। इस दिन कोई अनाज नहीं खाता है। यहां तक कि पशु भी चारे की जगह एकादशी के दिन फल खाते हैं। सभी लोगों की तरह तुम्हें भी एकादशी करनी होगी। मंजू़र है तो बताओ?” 


हाँ महाराज, मैं एकादशी व्रत करने को तैयार हूं, कहकर उसने मंजू़री दे दी। 


जब एकादशी का दिन आया, वह भूख से छटपटाने लगा। उसने कहा, “महाराज फल से मेरी भूख नहीं मिटेगी। मुझे खाना खाना है। मुझे खाना खाने की अनुमति दे दीजिए।”


राजा ने उसे एकादशी के दिन अन्न न खाने की शर्त याद दिलाई, लेकिन वह जिद करने लगा। उसे भूख से तड़पता देखकर राजा ने कहा, "हमारे राज्य में एकादशी के दिन भोजन नहीं बनता। तुम्हें खाना है भोजन तो तुम नदी के किनारे जाकर खाना बनाकर खाना। मैं तुम्हें अन्न दे रहा हूं।


अन्न लेकर वह सीधे नदी किनारे गया और नहाकर खाना बनाने लगा। खाना पकने के बाद उसने भगवान को पुकारा, “आइए प्रभू! खाना बन गया है।”


उसके बुलाने पर भगवान आए और भोजन करके अंतर्धान हो गए। 


अगली एकदाशी के दिन उस नौकर ने राजा से कहा, “मुझे ज्यादा अन्न चाहिए, उस दिन भगवान सब खा गए।”


राजा हैरान होकर बोले, “ऐसा नहीं हो सकता। भगवान ने मुझे दर्शन नहीं दिए। तुम्हें कैसे देंगे?”


नौकर कहने लगा, “महाराज आप खुद आकर देख लीजिएगा।”


राजा ने ऐसा ही किया। वो छुपकर देखने लगे।


उस दिन भगवान आए ही नहीं। पुकारते-पुकारते वह नौकर थक गया और नदीं में जान देने चल दिया।


तभी भगवान आए और उसे रोकते हुए साथ में खाना खाकर उसे अपने धाम ले गए। 


यह सब देखकर राजा हैरान होकर सोचने लगे, सिर्फ व्रत से भगवान खुश नहीं होते।


कहानी से सीख - शुद्ध मन वाले इंसान से ही भगवान खुश होते हैं।

बुद्धिमान राजा की कहानी | The Wise King Story In Hindi


होशियार राज्य में सालों पहले एक बुद्धिमान राजा शेरदिल रहता था। उनकी बुद्धिमत्ता की चर्चा दूसरे राज्यों तक थी। इसके कारण सभी दूसरे राजा-रानी और अन्य मंत्री उससे जलते थे।  

 


राजा कभी कोई कार्य बिना सोचे नहीं करता था। अगर किसी पर आरोप लगता था, तो राजा उसकी भी पूरी बातें सुनते थे। उसके बाद ही राजा कोई फैसला लेते थे।


राजा शेरदिल की बुद्धिमत्ता से चलन के कारण कोई-न-कोई उनकी आए दिन नए तरीके से परीक्षा लेता रहता था। मगर हर बार राजा शेरदिल बुद्धिमत्ता की परीक्षा में खरा उतरता था।

एक दिन राजा शेरदिल की परीक्षा लेने पास के ही एक राज्य से एक राजकुमारी आई। होशियार राज्य के राजदरबार में राजकुमारी दो फूल माला लेकर पहुंची। 

दोनों मालाएं लेकर उसने राजा शेरदिल से पूछा, आपको बड़ा बुद्धमान माना जाता है। मेरे हाथ में दो फूल मालाएं हैं। इनमें से कौन-सी अच्छी है और कौन-सी नकली, यह आपको बताना होगा। तभी मैं मानूंगी कि आप बुद्धिमान हैं।


दोनों मालाएं असली दिखती थीं। राजा ने सोचा ऐसे में इन मालाओं का भेद बता पाना तो मुश्किल होगा। राजदरबार के लोग भी इन मालाओं को देखकर हैरान थे। 


राजा ने तभी अपने एक सैनिक को कहा कि तुम बगीचे के तरफ की खिड़कियों को खोल दो। खिड़की खोलते ही कुछ मधुमक्खियां राजदरबार में आ गई। 


कुछ देर मधुमक्खियों को देखने के बाद राजा ने कहा, राजकुमारी, मैं बता सकता हूं कि आपके कौन-से हाथ की माला असली है।


राजा ने कहा, आपके बाएं हाथ की माला असली है। उसमें मधुमक्खी बैठी है। राजा का जवाब एकदम सही था। राजकुमारी ने इस बात को सुनते ही राजा की बुद्धिमानी की तारीफ की।  

राजदरबार के लोग भी कहने लगे कि आप बड़े ही बुद्धिमान राजा हैं। हमारे राज्य को आपके जैसे ही राजा की आवश्यता है।


कहानी से सीख - बुद्धि का इस्तेमाल करने से मुश्किल-से-मुश्किल सवाल का सही जवाब मिल जाता है।

ज्ञानी बालक और राजा की कहानी | Budhiman Balak Aur Raja Story in Hindi

सालों पहले श्यामा नाम का राजा फतेहगढ़ में राज करता था। सप्ताह में तीन-चार बार वह शिकार करने जाता था। एक दिन शिकार की खोज में राजा और उसके सैनिक घने जंगल में चले गए। 

अचानक आंधी-तूफान चलने लगा। सारे सैनिक आंधी से बचने के लिए इधर-उधर चले गए। आंधी-तूफान रुकने के बाद राजा ने आसपास देखा, तो कोई नहीं था। 


राजा थक भी गए थे और भूख-प्यास के मारे उनकी हालत खराब हो गई थी। उसी समय राजा ने तीन लोग आते हुए देखे। राजा ने उनसे कहा, मुझे भूख लगी है, क्या आप मुझे कुछ खाने-पीने को दे सकते हैं। 


वो तेजी से घर गए और भोजन-पानी लेकर आ गए। राजा ने खाना खाया और उन्हें बताया कि वो फतेहगढ़ के राजा हैं। यह बताने के बाद राजा ने उन तीनों लोगों से कुछ मांगने को कहा। 


एक व्यक्ति ने राजा से धन मांगा, दूसरे ने घर और घोड़ा मांगा और तीसरे ने कहा, मुझे ज्ञान चाहिए। मुझे पढ़ना है। राजा ने अपने महल सबकी इच्छी पूरी कर दी। 


एक साल बाद राजा को उन तीनों से मिलने की इच्छा हुई। तीनों को राजा ने अपने महल बुलाया और उनका हाल जानना चाहा।  


पहले व्यक्ति ने राजा से कहा, धन मिलने के बाद भी मेरी स्थिति अच्छी नहीं है। मैं गरीब ही हूं। सारा धन मैंने बर्बाद कर दिया। दूसरे ने कहा, मेरा घोड़ा चोरी हो गया था और पैसों के लिए मैंने घर बेच दिया। मेरी स्थिति पहले जैसी ही है।


तीसरे लड़के से जब राजा ने पूछा, तो उसने कहा कि मैं उस पढ़ाई की वजह से आपके दरबार में कार्यरत हूं। मैं खुद से कमाई करता हूं। 


कहानी से सीख - जीवन की सबसे बड़ी पूंजी ज्ञान है और कुछ नहीं। 


कवि और राजा के महल की कहानी | The Poet And The King Palace Story In Hindi

पाल्पा देश में एक प्रसिद्ध कवि था। वो राजा को प्रसन्न करने के लिए रोजाना राजमहल जाकर उन्हें अपनी कविता सुनाने की कोशिश करता था। मगर सैनिक हमेशा कवि को कहते तुम राजमहल तबतक नहीं जा सकते जबतक तुम्हें राजा का बुलावा नहीं आता।


कवि रोजाना शाम के समय राजमहल के बाहर जाता और रोज सिपाही उसे यही कहते। कवि उदास होकर घर लौट जाता। एक शाम कवि घर से राजमहल के लिए निकल ही रहा था कि दरवाजे पर कोई आया। कवि ने जब दरवाजा खोला, तो एक व्यक्ति ने उससे एक पता पूछा। 


कवि ने बताया कि यह पता बेहद दूर का है। अभी शाम हो चुकी है, तो आप अभी आप यहां रुक जाएं। कल सुबह आप निकल जाना। 


कवि ने कहा कि मेरे यहां रुकने से आपके परिवार को दिक्कत होगी। मैं किसी दूसरी जगह रुक जाऊंगा। कवि ने उनकी बात नहीं सुनी और बार-बार उनसे रुकने का आग्रह किया। इतने कहने के बाद वह व्यक्ति कवि के यहां रुकने के लिए तैयार हो गया। 



कवि की पत्नी ने धीरे से अपने पति से कहा, हमारे पास खाना बनाने के लिए भरपूर अनाज नहीं है। ऐसे में हम अतिथि का सत्कार कैसे करेंगे।


कवि जवाब में कहता है, तुम चिंता मत करो। मैं बाहर जाकर कुछ प्रबंध करता हूं। तुम अतिथि का ख्याल रखना। यह सारी बातें वह अतिथि सुन लेता है। 


इसके बाद कवि अतिथि के पास जाकर कहता है, आप आराम कीजिए। मैं बाहर जाकर आता हूं। थोड़ी देर बाद कवि एक राशन की दुकान से उधार सामान लेकर आता है।


कवि की पत्नी खान बनाकर अतिथि को भोजन के लिए बुलाते हैं। भोजन करने के बाद कवि ने उसे कुछ कविताएं सुनाई। अतिथि को कविताएं बेहद पसंद आईं। उसने कविता की बहुत तारीफ की।


कवि ने कहा, इसका कोई मतलब नहीं है, क्योंकि मेरी कविता कोई नहीं सुनता। मैं रोज राजा को अपनी कविताएं सुनाने के लिए राजमहल जाता हूं, लेकिन मुझे सैनिक राजा से मिलने नहीं देते।



अतिथि बोला, आपकी कविताएं बहुत अच्छी हैं। आपको अपनी कोशिश जारी रखनी चाहिए। कभी-न-कभी आपको राजा को अपनी कविताएं सुनाने का मौका जरूर मिलेगा।


अगले दिन सुबह होते ही वह अतिथि कवि के घर से चला गया। शाम को कवि राजमहल जाने के लिए निकलने ही वाला होता है कि राजा के सैनिक कवि के घर पहुंच जाते हैं। सैनिक कहते हैं आपके लिए राजा ने बुलावा भेजा है। 


सैनिकों के साथ कवि राजमहल चला गया। वहां उसने राजा को बहुत सारी कविताएं सुनाई। राजा ने कवि को राजमहल में ही नौकरी दे दी और कविता सुनाने के लिए इनाम भी दिया। 


खुशी के मारे तेजी से कवि घर गया और अपनी पत्नी को राजा से मिले इनाम और नई नौकरी के बारे में बताया। पत्नी भी बेहद प्रसन्न हुई और कहा कि वह अतिथि हमारे लिए भाग्यशाली निकला। उनके आने से जीवन में खुशहाली आ गई। 


कहानी से सीख - इंसान को लगातार कोशिश जारी रखनी चाहिए। कभी-न-कभी उसे मौका जरूर मिलता है।

भूखा राजा और गरीब किसान की कहानी | The Hungry King And Poor Farmer Story In Hindi

सीमाद्वार राज्य का राजा नरेंद्र सिंह अपने राज्य में रूप बदलकर घूमता था। रूप बदलकर राजा प्रजावासियों से मिलकर राज्य की दिक्कतों और राजा यानी खुद के बारे में बातें करता था। 

एक दिन जब राजा भेष बदलकर अपने राज्य में घूम रहे थे, तो बारिश होने लगी। उन्होंने बिना कुछ सोचे ही पास के एक घर का दरवाजा खटखटा दिया।

एक गरीब किसान ने दरवाजा खोला, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। किसान ने बारीश तेज होने के कारण उसे अंदर बुला लिया। घर के अंदर आते ही राजा ने पूछा, कुछ खाने के लिए है क्या, मुझे भूख लगी है। 

भूखा राजा और गरीब किसान की कहानी | The Hungry King And Poor Farmer Story In Hindi

किसान का परिवार पिछले 3 दिनों से भूखा था। उनके घर में कुछ था ही नहीं। मगर किसान ने सोचा कि अतिथि को ऐसे कैसे भूखा रख सकते हैं। किसान ने अतिथि से कहा, आप थोड़ा इंतजार कीजिए। 

किसान ने सोचा कि अतिथि का पेट भरने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। वो सीधे पास वाली दुकान में गया और दो मुट्ठी चावल लेकर आ गया। किसान ने उस चावल को पकाकर अतिथि को खिला दिया। कुछ देर बाद बारिश रुकने पर राजा वहां से चले गए।

अगले दिन अनाज के दुकान का मालिक ने किसान पर चोरी का इल्जाम लगाया और राजा के पास इंसाफ के लिए पहुंचा। राजा ने किसान को सभा में लाने का आदेश दिया। किसान ने वहां पहुंचते ही सारी स्थिति बता दी। 

राजा ने किसान को बताया कि मैं ही तुम्हारे घर आया था। फिर राजा ने अनाज के दुकानदार से पूछा, क्या तुमने किसान को चोरी करते हुए देखा।

दुकानदार ने कहा, हां मैंने रात के समय किसान को चोरी करते हुए देखा। यह सुनते ही राजा बोले, इस चोरी का सबसे बड़ा जिम्मेदार मैं हूं। मुझे कुछ खाना खिलाने के लिए किसान ने ऐसा किया। दूसरे जिम्मेदार तुम हो। 

अनाज चोरी होने से पहले तुमने उसके परिवार की गरीबी और रोजाना परिवार का भूखा सोना देखा होता, तो यह नौबत नहीं आती। तुमने उसे चोरी करते हुए तो देख लिया, लेकिन कभी पड़ोसी होने का फर्ज नहीं निभाया। 

कहानी से सीख - आस-पास रहने वाले मुसीबत में है, तो हमें उनकी मदद करनी चाहिए। 

राजा और पुजारी की कहानी | The King And Priest Story In Hindi

सालों पहले जावा साम्राज्य में सिदी मान्तरा नाम का एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था। जावा साम्राज्य का सम्राट भी उस ब्राह्मण के ज्ञान से बेहद खुश था। उन्होंने ब्राह्मण को काफी सुख-सुविधाएं दे रखी थीं। 

कुछ समय बाद उस ब्राह्मण ने एक खूबसूरत लड़की से विवाह कर लिया। कुछ सालों बाद उनके घर एक बेटा का जन्म हुआ। उसका नाम ब्राह्मण ने मानिक रखा। मानिक भी बड़ा होकर पिता की तरह बुद्धिमान हो गया।

मानिक को भी जावा साम्राज्य के सम्राट से काफी सम्मान मिलने लगा। यूं तो मानिक बुद्धिमान था और बहुत-सी अच्छी आदतें थी, लेकिन जुआ खेलने की लत उसे पड़ गई थी।

राजा और पुजारी की कहानी | The King And Priest Story In Hindi

जुए की लत के कारण मानिक घर की सारी संपत्ति बर्बाद कर दी और कर्ज में डूब गया। बेटे के कारण घर की ऐसी स्थिति देखकर उसके माता-पिता परेशान व दुखी रहने लगे। 

सारे लोग अपने पैसे मानिक से मांगने लगे, तो वो परेशान होकर अपने पिता के पास गया। ब्राह्मण सिदी मान्तरा को बेटे के ऊपर दया आ गई। पिता ने सोचा कि मैं पूरे गांव के लोगों के घर पूजा-पाठ करके बेटे का कर्ज चुका दूंगा। मगर ऐसा हो नहीं पाया।

एक दिन बेटे के कर्ज को चुकाने के बारे में सोचते-सोचते ब्राह्मण को नींद आ गई। उसने सपने देखा कि पूर्व दिशा में ज्वालामुखी पहाड़ी के पास काफी सारा खजाना है। नींद में ब्राह्मण ने देखा कि बेसुकी उस खजाने की सुरक्षा करता है। 

सपना टूटने के बाद ब्राह्मण ने सारी बातें अपनी पत्नी को बता दी। उसने अपने पति सिदी मान्तरा से कहा, हमें एक बार उस पहाड़ में जाकर देखना चाहिए। शायद हमें धन मिल जाए और हम अपने बेटे का कर्ज चुका सके। आखिर हमारा बेटा बिगड़ा भी तो हमारे प्यार की वजह से ही है।

अगले दिन दोनों पति-पत्नी ज्वालामुखी पर्वत के लिए निकल गए। कड़ी दिक्कतों का सामना करने के बाद वो पर्वत तक पहुंचे। उन्होंने मंत्रों का उच्चारण करते हुए पास के मंदिर की घंटी बजाई। उसी समय बेसुकी व्यक्ति वहां आए। 

सिदी मान्तरा ने उन्हें सपने में देखा था, इसलिए तुरंत पहचान लिया और झुककर प्रणाम किया। ब्राह्मण ने अपनी दिक्कत बेसुकी को बता दी। बेसुकी जानते थे कि सिदी मान्तरा एक ज्ञानी ब्राह्मण है, इसलिए उन्होंने उसे जेवर और सोने के सिक्के दिखा दिए।

बेसुकी ने कहा कि अपनी जरूरत के हिसाब से आप यहां से धन और जेवर लेकर चले जाएं। यह कहते ही वो अंतर्ध्यान हो गए। सिदी मान्तरा और उनकी पत्नी वहां से धन लेकर जाने लगे। 

घर में अपने माता-पिता को न देखकर मानिक परेशान हो गया। उसे डर लगने लगा कि कहीं उसके कर्ज के कारण मां-बार किसी दिक्कत में तो नहीं हैं। 

उसी समय किसी ने दरवाजा खटखटाया। दौड़कर मानिक दरवाजा खोलने गया। माता-पिता को घर लौटा हुआ देखकर वो खुश हो गया। उसने माता-पिता से पूछा कि आप लोग कहा थे। उन्होंने जवाब देने के बजाय बात को टाल दिया। 

अगले दिन उन्होंने अपने बेटे को पैसा और जेवर देकर कर्ज चुकाने को कहा। इतना पैसा देखकर वो हैरान हो गया। उसने पूछा, इतना सारा पैसा कहा से आया। उन्होंने दोबारा इस बात का जवाब नहीं दिया और कहा कि तुम अपना कर्ज चुका दो, यही अभी जरूरी है।

मानिक ने झट से अपने माता-पिता के पैर छुए और दोबारा जुआ न खेलने की कसम खाई। इतना कहकर मानिक घर से बाहर चला गया। उसके माता-पिता पूजा-पाठ में लग गए।

कहानी से सीख - प्यार की वजह किसी को इतना भी नहीं बिगड़ जाना चाहिए कि जुए की लत लग जाए। साथ ही इंसान को दूसरा मौका भी देना चाहिए।

दो सांपों की कहानी | Two Snakes Story In Hindi

शिवा राज्य में देवशक्ति राजा का राज था। राजा का एक बेटा था सुकुमार, जो बहुत बीमार रहता था। वैद्य से पता चला कि राजकुमार के पेट में सांप ने डेरा जमा रखा है।

सांप के कारण राजकुमार दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा था। प्रसिद्ध-से-प्रसिद्ध वैद्य भी राजकुमार को  स्वस्थ नहीं कर पा रहे थे।

अपने स्वास्थ्य के कारण पिता को परेशान देखकर एकदिन राजकुमार दूसरे राज्य सहसा जाकर भिखारी के भेष में एक मंदिर में रहने लगा।

सहसा का राजा बलि था, जिसकी दो बेटियां थी। दोनों बेटी रोजाना अपने पिता से सुबह-सुबह आशीर्वाद लेती थीं। पहली बेटी ने एक दिन पिता को कहा, आप महान हैं, आपके ही कारण सभी लोग सुख रहते हैं।

दूसरी बेटी बोली, पिता जी नमस्ते! भगवान आपको अपने कर्मों का फल दे। दूसरी बेटी की इन बातों से राजा को रंज हो गया। उन्होंने अपने सिपाही से कहा कि इसका विवाह किसी गरीब इंसान से करवा दो। तब इसे इन कठोर शब्दों का पता चलेगा और अपने कर्म का फल चखेगी।

राजा के आदेश पर मंत्री ने एक भिखारी से राजकुमारी का विवाह करवा दिया। यह भिखारी शिवा राज्य का राजकुमार था, जो पेट में सांप के कारण बीमार था। मंदिर में अपनी पत्नी के साथ रहना उसे अच्छा नहीं लगा, इसलिए वह पत्नी के साथ अपने राज्य की यात्रा पर निकल गया। 

यात्रा करते समय राजकुमार और उसकी पत्नी थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गए। उसके बाद राजकुमारी खाने का प्रबंध करने के लिए पास में चली गई। लौटते हुए उसने देखा कि उसके पति के मुंह से सांप को निकलते हुए देखा। 

वो सांप निकलकर पास के एक बिल में गया। वहां एक और सांप था। वह दूसरा सांप कहने लगा, तुम राजकुमार के पेट में रहकर उसे दर्द देते हो। क्या तुम्हें डर नहीं लगता कि वो जीरे और सरसों के तेल का सूप राजकुमार को पिलाकर तुम्हें मार डालेंगे।

राजकुमार के पेट में रहने वाला सांप कहता है, उन्हें इस उपचार के बारे में पता नहीं है और कभी पता भी नहीं चलेगा। तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारे इस बिल में सोने के घड़े हैं किसी को पता चल गया, तो तुम्हारा क्या होगा? लोग इस बिल में गर्म पानी डालकर तुम्हें मार डालेंगे, इसका डर तुम्हें नहीं लगता?

बिल में रहने वाले सांप ने कहा, नहीं! लोगों को इन सोने के घड़ों के बारे में कभी पता नहीं चलेगा। इसी तरह की दूसरी बातें करने के बाद सांप बिल से निकलकर राजकुमार के मुंह से होते हुए उसके पेट में चले गया।

सांप की सारी बातें राजकुमार की पत्नी ने सुन ली। वो भोजन का सामान साथ तो लाई ही थी, तो उसने खाने के साथ जीरा और सरसों के तेल का सूप बनाकर भी पति को पिला दिया।

कुछ ही देर में राजकुमार को अपने स्वास्थ्य में बदलाव लगने लगा। उसे उल्टी हुई और सांप बाहर निकल गया। पति के ठीक होते ही राजकुमारी ने पास के सांप के बिल में गर्म पानी डाल दिया। किसी तरह से सांप वहां से निकलकर भाग गया।

राजकुमारी उस बिल में जाकर सोने के घड़े को बाहर ले आई। दोनों पति-पत्नी सोने के घड़े को लेकर अपने शिवा राज्य चले गए। राजा देवशक्ति ने अपने बेटे और बहू का अच्छे से स्वागत किया। 

कहानी से सीख - किसी भी स्थिति में हार मानकर नहीं बैठना चाहिए। समय आने पर कठिन-से-कठिन परिस्थिति से निकलने का रास्ता मिल जाता है।


कबूतर और मधुमक्खी की कहानी | Bee And Dove Story In Hindi

सालों पहले रायवाला जंगल के किनारे एक नदी बहती थी। नदी के पास में ही एक आम का पेड़ था, जिसपर एक कबूतर रहता था। 

कुछ दिनों बाद एक मधुमक्खी रायवाला जंगल के पास उड़ रही थी और वो उड़ते-उड़ते नदी में जा गिरी। पानी की वजह से उसके पंख गीले हो गए और वो पानी से बाहर नहीं निकल पाई।

मधुमक्खी मदद के लिए चिल्लाने लगी। तभी पेड़ पर बैठा कबूतर उड़कर मधुमक्खी को बचाने के लिए नदी के पास पहुंचा। कबूतर ने अपनी चोंच में एक पत्ता लेकर उसे नदी में गिरा दिया।


पत्ता तैरते हुए जब मधुमक्खी के पास पहुंचा, तो वह उसपर बैठ गई। जब उसके पंख सूख गए, तो उसने कबूतर को धन्यवाद कहा और उड़ गई।


कुछ दिनों बाद वह कबूतर गहरी नींद में था। एक शैतान बच्चे ने उस कबूतर को देखा और उसे शरारत सूझी। उसने एक हाथ में पत्थर उठा लिया और कबूतर को मारने लगा। 


एक दिन कबूतर ने जिस मधुमक्खी की मदद की थी, उसने देख लिया कि लड़का कबूतर को नुकसान पहुंचाना चाहता है। 

मधुमक्खी ने सीधे जाकर लड़के के उस हाथ पर डंक मार दिया, जिसमें पत्थर था। डंक लगते ही उसके हाथ से पत्थर नीचे जा गिरा और वो चिल्लाने लगा। 


उसकी चीख सुनकर कबूतर की नींद खुल गई। कबूतर की नींद खुलते ही उसने बच्चे उसके पास मोटा पत्थर और मधुमक्खी को देखा। कबूतर समझ गया कि मेरी जान बचाने के लिए मधुमक्खी ने इस शरारती लड़के के हाथ पर डंक मारा है। 


इस बार कबूतर ने मधुमक्खी को अपनी जान बचाने के लिए धन्यवाद कहा और दाना ढूंढने के लिए आसमान की ओर उड़ गई। 


कहानी से सीख - मुसीबत में फंसे की मदद करना अच्छा कर्म है। यह अच्छा कर्म बाद में लौटकर जरूर आता है। 


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