सीमाद्वार राज्य का राजा नरेंद्र सिंह अपने राज्य में रूप बदलकर घूमता था। रूप बदलकर राजा प्रजावासियों से मिलकर राज्य की दिक्कतों और राजा यानी खुद के बारे में बातें करता था।
एक दिन जब राजा भेष बदलकर अपने राज्य में घूम रहे थे, तो बारिश होने लगी। उन्होंने बिना कुछ सोचे ही पास के एक घर का दरवाजा खटखटा दिया।
एक गरीब किसान ने दरवाजा खोला, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। किसान ने बारीश तेज होने के कारण उसे अंदर बुला लिया। घर के अंदर आते ही राजा ने पूछा, कुछ खाने के लिए है क्या, मुझे भूख लगी है।
किसान ने सोचा कि अतिथि का पेट भरने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। वो सीधे पास वाली दुकान में गया और दो मुट्ठी चावल लेकर आ गया। किसान ने उस चावल को पकाकर अतिथि को खिला दिया। कुछ देर बाद बारिश रुकने पर राजा वहां से चले गए।
अगले दिन अनाज के दुकान का मालिक ने किसान पर चोरी का इल्जाम लगाया और राजा के पास इंसाफ के लिए पहुंचा। राजा ने किसान को सभा में लाने का आदेश दिया। किसान ने वहां पहुंचते ही सारी स्थिति बता दी।
राजा ने किसान को बताया कि मैं ही तुम्हारे घर आया था। फिर राजा ने अनाज के दुकानदार से पूछा, क्या तुमने किसान को चोरी करते हुए देखा।
दुकानदार ने कहा, हां मैंने रात के समय किसान को चोरी करते हुए देखा। यह सुनते ही राजा बोले, इस चोरी का सबसे बड़ा जिम्मेदार मैं हूं। मुझे कुछ खाना खिलाने के लिए किसान ने ऐसा किया। दूसरे जिम्मेदार तुम हो।
अनाज चोरी होने से पहले तुमने उसके परिवार की गरीबी और रोजाना परिवार का भूखा सोना देखा होता, तो यह नौबत नहीं आती। तुमने उसे चोरी करते हुए तो देख लिया, लेकिन कभी पड़ोसी होने का फर्ज नहीं निभाया।
कहानी से सीख - आस-पास रहने वाले मुसीबत में है, तो हमें उनकी मदद करनी चाहिए।