महाभारत युद्ध का आरम्भ होने के पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए उसे श्रीमद्भगवद्गीता कहते हैं। गीता में कुल 18 अध्याय और 720 श्लोक हैं। गीता के कुछ प्रसिद्ध श्लोक इस प्रकार हैं -
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
जब-जब धर्म की हानि होगी और अधर्म की वृद्धि होगी, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) अवतार लेता रहूँगा।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
श्रेष्ठ व्यक्ति का आचरण जैसा होता है, वैसा ही आचरण दूसरे इंसान करने लगते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जैसा उदाहरण पेश करते हैं, सारा समाज उसी का अनुसरण करने लग जाता है।
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
आत्मा को न शस्त्र काट सकता है, न आग जला सकती है, न पानी भिगो सकता है, न हवा सुखा सकती है। अर्थ यह है कि आत्मा अमर है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
कर्तव्य-कर्म ही तेरा अधिकार है, फल नहीं। तुम कर्म फल को मत सोचो और कर्म न करने में भी आसक्त न रहो।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
विषयों वस्तुओं के बारे में सोचने से मनुष्य को आसक्ति होती है। इससे इच्छाएं पैदा होती हैं और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध उत्पन्न होता है।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)
क्रोध से मनुष्य की मती मारी जाती है, मति भ्रष्ट होने से स्मृति भ्रमित होती है। स्मृति-भ्रम होने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट होती है। बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य खुद का नाश कर बैठता है।