सोमपुर नाम के एक जंगल में बेहद पुराना बरगद का पेड़ था, जिसमें एक कौआ और उसकी पत्नी रहते थे। दोनों पति-पत्नी बड़े खुश थे।
एक दिन बरगद के पेड़ के एक खोखले तने पर एक जहरीला सांप आ गया। सांप को वह जगह अच्छी लगने लगी, तो वही रहने लगा।
एक दिन कौवे की पत्नी ने कुछ अंडे दिए। सांप को जैसे ही पता चला उसने वो अंडे खाकर अपना पेट भर लिया। सांप हमेशा इसी तरह कौवे के अंडे खा लेता था।
कौआ और उसकी पत्नी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन है, जो उनके साथ ऐसा कर रहा है। एक दिन कौवा और उसकी पत्नी दाना चुग कर बाहर घोंसले में लौटे। तभी उन्होंने देखा कि एक सांप उनके अंडे पर झपट रहा है।
पति-पत्नी अंडे बचा तो नहीं पाए, लेकिन कौवे ने अपनी पत्नी से कहा, "देखो! अब हमें दुश्मन का पता चल गया है। भले ही हम इन्हें नहीं बचा पाए, लेकिन आगे अपने बच्चों को बचा लेंगे।"
"हम अपना घोंसला सबसे ऊंची टहनी में बनाएंगे। इससे अंडे सुरक्षित रहेंगे। वहां सांप नहीं आएगा, क्योंकि उसे चील का डर रहेगा।
कौवे की बात उसकी पत्नी ने मान ली। उन्होंने ऊंची टहनी में घोंसला बना लिया। कुछ समय बाद उन्होंने वहां अंडे दिए और उससे बच्चे भी निकल आए। दोबारा कौवों का जोड़ा खुशी-खुशी रहने लगा।
सांप को लगा कि उसके डर से कौवे उस पेड़ से चले गए। रोज कौवे और उसकी पत्नी को उसी बरगद पेड़ में आते हुए देख कुछ दिनों बाद सांप समझ गया कि ये यही रहते हैं।
एक दिन सांप पेड़ पर उनका घोंसला ढूंढते हुए ऊंचाई पर पहुंच गया। वहां कौवे के तीन छोटे-छोटे बच्चे थे, उन्हें वो सांप तेजी से खा गया।
कौआ और उसकी पत्नी जब लौटी, तो घोंसले में बच्चों के छोटे-छोटे पंख बिखरे हुए देखकर दोनों रोने लगे। कौवे की पत्नी ने कहा, "इसी तरह हमारे बच्चे को यह हमेशा खा जाएगा। हमें यहां से कही दूर चले जाना चाहिए।"
कौआ अपनी से बोला, "डरकर कहीं भाग जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है। हमें अपने मित्र लोमड़ी के पास जाकर कोई उपाय पूछना चाहिए।"
दोनों लोमड़ी के पास गए और सांप की सारी हरकतों के बारे में बता दिया। लोमड़ी ने दोनों को हल्की आवाज में एक तरकीब बताई और कहा कि इसे कल ही अंजाम दे देना।
अगले दिन कौवा सीधे उस सरोवर में पहुंचा जहां उस प्रदेश की राजकुमारी आती थी। वो अपनी सहेलियों के साथ वहां पानी में खेल रही थी। कौवे ने मौका देखकर राजकुमारी का सबसे पसंदीदा मोती का हार मुंह में दबा लिया।
जब राजकुमारी की सहेली ने उसे देखा, तो कौवा हल्की गति में आसमान में उड़ने लगा। राजकुमारी की सखी ने चिल्लाते हुए यह बात सिपाहियों को बताई। सिपाही कौवे का पीछा करते हुए बरगत के पेड़ के पास तक पहुंच गए।
कौवे ने बड़ी चालाकी से मोती का हार बरगद के उस तने पर डाल दिया, जहां सांप रहता था। माला को गिरता देख सिपाही उस तने की ओर बढ़ने लगे।
सिपाहियों ने देखा कि वहां एक काला सांप है और उसी के पास मोती की माला गिरी हुई है। सारे सैनिक थोड़ा पीछे हुए और पेड़ के उस तने पर वार किया।
प्रहार होते ही सांप बौखलाते हुए बाहर निकला। मौका देखकर दूसरे सैनिकों ने उसे मार दिया और हार लेकर राजकुमारी को दे दिया।
इस तरह कौवे और उसकी पत्नी ने अपने दोस्त लोमड़ी की तरकीब की मदद सांप को मार दिया और अपने बच्चों की मौत का बदला ले लिया।
कहानी से सीख - बौखलाहट और दुख-दर्द में डूबे रहने से समस्या का समाधान नहीं निकलता है। इसके लिए सूझबूझ और अपनों की मदद लेनी चाहिए।