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Panchtantra ki Kahani : खटमल और जूं | Khatmal Aur Joon Story in Hindi

स्वयंभू नाम के राज्य में राजा शेरगढ़ रहते थे। उनके कमरे में एक जूं  छुपकर रहती थी। उस जूं का नाम मंदरीसर्पिणी था। रात को जैसे ही राजा गहरी नींद में चला जाता, जल्दी से मंदरीसर्पिणी जूं राजा का खून चूस लेती थी। उसके बाद दोबारा छुप जाती।

कुछ दिनों बाद राजा के उसी कमरे में एक अग्निमुख नामक खटमल आ गया। मंदरीसर्पिणी जूं ने राजा के कक्ष को अपना क्षेत्र बताते हुए उसे वहां से किसी दूसरी जगह जाने को कहा। जूं बोली, मैं यहां तुम्हारा किसी तरह का दखल सहन नहीं करूंगी।

खटमल बड़ा चालाक था। उसने कहा, "मैं तुम्हारे इलाके में आया हूं, तो मैं तुम्हारा मेहमान हुआ। तुम इस तरह व्यवहार मत करो। आज रात मुझे मेहमान की तरह यहां रहने दो। कल मैं यहां से चला जाऊंगा।" 

मंदरीसर्पिणी जूं थोड़ी भोली थी। वो खटमल की प्यार भरी बातों में आ गई और कहा, "ठीक है! मैं तुम्हें यहां आज रात रुकने देती हूं। बस तुम राज का खून मत चूसना। एक मेहमान की तरह ही रहना।" 

खटमल ने पूछा, ‘‘तुम अपने मेहमान को भूखा रखोगी? मैं खाने में क्या खाऊंगा। राजा के खून के अलावा मुझे क्या मिलेगा?’’

कुछ देर सोचने के बाद जूं कहने लगी, ‘‘ठीक है! तुम अपनी भूख को शांत करने के लिए थोड़ी देर राजा का खून चूस लेना। बस उन्हें दर्द का एहसास नहीं होना चाहिए।’’

जूं की बातों पर सहमत होकर खटमल राजा के इंतजार में कमरे के एक कोने में बैठ गया। थोड़ी ही देर में राजा खाना खाकर सोने के लिए अपने कमरे पर पहुंचा। 

राजा जैसे ही पलंग पर लेटा खटमल उसके पास पहुंच गया। कुछ देर बाद खटमल ने राजा का खून चूसना शुरू कर दिया। खटमल का पेट तो भर गया था, लेकिन उसे राजा के खून का स्वाद बड़ा अच्छा लगा। 

अब खटमल ज्यादा खून चूसने के लिए राजा को जोर-जोर से काटने लगा। राजा को खटमल के जोर से काटने पर खुजली और हल्का दर्द होने लगा। गुस्से में राजा ने अपने सारे सेवकों को बुलाकर खटमल को ढूंढने का आदेश दिया।

खटमल चालाक था, इसलिए वो तेजी से पलंग की ओट पर छुप गया। सिपाहियों ने राजा के बिस्तर पर जूं को देखा और उसे मार डाला।

अब रोज खटमल बड़ी होशियारी से राजा का खून चूसता और शान से राजा के कमरे पर रहता था। अब उसे टोकने के लिए जूं भी जिंदा नहीं थी।

कहानी से सीख - किसी की भी जरूरत से ज्यादा प्यार भरी बातों को सुनकर सतर्क हो जाना चाहिए। ज्यादा मिठास हानिकारक होती है।  

पंचतंत्र : दुष्ट सर्प और कौवे की कहानी | Dusht Sarp Aur Kauve ki Kahani in Hindi

सोमपुर नाम के एक जंगल में बेहद पुराना बरगद का पेड़ था, जिसमें एक कौआ और उसकी पत्नी रहते थे। दोनों पति-पत्नी बड़े खुश थे। 

एक दिन बरगद के पेड़ के एक खोखले तने पर एक जहरीला सांप आ गया। सांप को वह जगह अच्छी लगने लगी, तो वही रहने लगा। 

एक दिन कौवे की पत्नी ने कुछ अंडे दिए। सांप को जैसे ही पता चला उसने वो अंडे खाकर अपना पेट भर लिया। सांप हमेशा इसी तरह कौवे के अंडे खा लेता था।

कौआ और उसकी पत्नी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन है, जो उनके साथ ऐसा कर रहा है। एक दिन कौवा और उसकी पत्नी दाना चुग कर बाहर घोंसले में लौटे। तभी उन्होंने देखा कि एक सांप उनके अंडे पर झपट रहा है।

पति-पत्नी अंडे बचा तो नहीं पाए, लेकिन कौवे ने अपनी पत्नी से कहा, "देखो! अब हमें दुश्मन का पता चल गया है। भले ही हम इन्हें नहीं बचा पाए, लेकिन आगे अपने बच्चों को बचा लेंगे।"

"हम अपना घोंसला सबसे ऊंची टहनी में बनाएंगे। इससे अंडे सुरक्षित रहेंगे। वहां सांप नहीं आएगा, क्योंकि उसे चील का डर रहेगा। 

कौवे की बात उसकी पत्नी ने मान ली। उन्होंने ऊंची टहनी में घोंसला बना लिया। कुछ समय बाद उन्होंने वहां अंडे दिए और उससे बच्चे भी निकल आए। दोबारा कौवों का जोड़ा खुशी-खुशी रहने लगा।

सांप को लगा कि उसके डर से कौवे उस पेड़ से चले गए। रोज कौवे और उसकी पत्नी को उसी बरगद पेड़ में आते हुए देख कुछ दिनों बाद सांप समझ गया कि ये यही रहते हैं।

एक दिन सांप पेड़ पर उनका घोंसला ढूंढते हुए ऊंचाई पर पहुंच गया। वहां कौवे के तीन छोटे-छोटे बच्चे थे, उन्हें वो सांप तेजी से खा गया।

कौआ और उसकी पत्नी जब लौटी, तो घोंसले में बच्चों के छोटे-छोटे पंख बिखरे हुए देखकर दोनों रोने लगे। कौवे की पत्नी ने कहा, "इसी तरह हमारे बच्चे को यह हमेशा खा जाएगा। हमें यहां से कही दूर चले जाना चाहिए।"

कौआ अपनी से बोला, "डरकर कहीं भाग जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है। हमें अपने मित्र लोमड़ी के पास जाकर कोई उपाय पूछना चाहिए।"

दोनों लोमड़ी के पास गए और सांप की सारी हरकतों के बारे में बता दिया। लोमड़ी ने दोनों को हल्की आवाज में एक तरकीब बताई और कहा कि इसे कल ही अंजाम दे देना। 

अगले दिन कौवा सीधे उस सरोवर में पहुंचा जहां उस प्रदेश की राजकुमारी आती थी। वो अपनी सहेलियों के साथ वहां पानी में खेल रही थी। कौवे ने मौका देखकर राजकुमारी का सबसे पसंदीदा मोती का हार मुंह में दबा लिया।

जब राजकुमारी की सहेली ने उसे देखा, तो कौवा हल्की गति में आसमान में उड़ने लगा। राजकुमारी की सखी ने चिल्लाते हुए यह बात सिपाहियों को बताई। सिपाही कौवे का पीछा करते हुए बरगत के पेड़ के पास तक पहुंच गए।

कौवे ने बड़ी चालाकी से मोती का हार बरगद के उस तने पर डाल दिया, जहां सांप रहता था। माला को गिरता देख सिपाही उस तने की ओर बढ़ने लगे। 

सिपाहियों ने देखा कि वहां एक काला सांप है और उसी के पास मोती की माला गिरी हुई है। सारे सैनिक थोड़ा पीछे हुए और पेड़ के उस तने पर वार किया।

प्रहार होते ही सांप बौखलाते हुए बाहर निकला। मौका देखकर दूसरे सैनिकों ने उसे मार दिया और हार लेकर राजकुमारी को दे दिया।

इस तरह कौवे और उसकी पत्नी ने अपने दोस्त लोमड़ी की तरकीब की मदद सांप को मार दिया और अपने बच्चों की मौत का बदला ले लिया।

कहानी से सीख - बौखलाहट और दुख-दर्द में डूबे रहने से समस्या का समाधान नहीं निकलता है। इसके लिए सूझबूझ और अपनों की मदद लेनी चाहिए। 

पंचतंत्र की कहानी : हाथी और गौरैया | Hathi Aur Goraiya in Hindi

सोमपुर के चौराहे पर एक पुराना पीपल का पेड़ था, उसपर एक गौरैया चिड़िया अपना घोंसला बनाकर पति गौरैया के साथ रहती थी। एक दिन गौरैया ने घोंसले में कुछ अंडे दिए। 

गौरैया को रोज अपने अंडों को सेकती थी। उसे उसने बच्चों के बाहर निकलने का बड़ा बेसब्री से इंतजार था। एक दिन अंड़ों को सेकते हुए गौरैया के पति ने उसे देखा। उसके मन में हुआ कि ये जबतक अंड़ों को सेक रही है, तबतक मैं खाने का कुछ इंतजाम करके आ जाता हूं। 

जैसे ही गौरैया का पति खाने लेने के लिए उड़ा वैसे ही एक पागल हाथी सोमपुर चौराहे की तरफ दौड़ते हुए बड़े। वो गुस्से में आसपास के सारे पेड़ तोड़ने लगा। उन्हीं पेड़ों में से एक वो पीपल का पेड़ भी था, जिसमें वो गौरैया रहती थी। 

हाथी उस पीपल के पेड़ को इतनी जोर से हिलाने लगा कि गौरैया का घोंसला गिर गया और गौरैया के सारे अंड़े फूट गए। अंडे से चूजों के निकलने का इंतजार कर रही गौरैया अब उनके फूटने का गम मनाने लगी। उसकी आंखें आंसू से भरी थीं। 

उसी समय गौरैया का पति वापस आया। उसने अपनी पत्नी को टूटे हुए अंड़ों के पास रोते हुए देखा। गौरैया ने अपने पति को हाथी के बारे में सबकुछ बता दिया। गुस्से में गौरैया के पति ने हाथी से बदला लेने की ठान ली।

गौरैया का पति अपने एक दोस्त के पास गया। वो कठफोड़वा नाम का पक्षी था। उसे गौरैया के पति ने अपने घोंसले और पत्नी की हालत सबकुछ बता दिया।

दोनों ने उस हाथी से बदला लेने की योजना बनाने की सोची। इस योजना में कठफोड़वा ने अपने दो दोस्त मधुमक्खी और मेंढक को भी शामिल कर लिया।

अपनी योजना के अनुसार, पहले मधुमक्खी उस हाथी के पास गई और उसके कान में गुनगुनाने लगी। हाथी को मधुमक्खी का संगीत अच्छा लगने लगा। हाथी आंखें बंद करके जहां खड़ा था वही लेट गया।

हाथी को आराम से लेटे हुए देखकर कठफोड़वा पक्षी ने हाथी की आंखें फोड़ दी। दर्द में हाथी करहाने लगा। उसके बाद मेंढक और उसके कुछ साथी थोड़ी दूर दलदल के पास से टर्र-टर्र करने लगे।

हाथी को लगा की मेंढक की आवाज आ रही है, तो हो सकता है कि पास में तलाब या नदी हो। इसी सोच के साथ हाथी मेंढक की आवाज वाली दिशा की तरफ बढ़ने लगा। हाथी की आंखें फूट चुकी थीं, इसलिए वो आगे अंदाजे से बढ़ रहा था और बढ़ते-बढ़ते तालाब में गिर गया। 

हाथी धीरे-धीरे दलदल में फंसते चला गया और थोड़ी ही देर में उसकी मौत गई। सभी दोस्तों का प्लान सफल हो गया और गौरैया के पति को बदला मिल गया

कहानी से सीख : कमजोर लोग भी एकजुट होकर ताकतवर लोगों को हराया जा सकता है।

पंचतंत्र की कहानी : बंदर और लकड़ी का खूंटा | Bandar Aur Lakri Ka Khoonta in Hindi

सरोजनगर में लकड़ी से मंदिर बनाने का कार्य चल रहा था। मंदिर जल्दी बनाना था, इसलिए बहुत सारे मजदूर इस कार्य में लगे हुए थे। लकड़ी का काम करते समय दोपहर के खाने का समय हुआ। 

एक मजदूर ने लकड़ी को चिरने के लिए उसमें कीला फंसाकर चला गया, ताकि दोबारा आरी डालने में दिक्कत न हो। दूसरे मजदूर भी अपना काम छोड़कर एक घंटे के लिए भोजन करने चले गए। 

उसी समय कुछ बंदर वहां उछलते-कूदते हुए आए। उनका एक सरदार था, जिसने सभी बंदरों को शरारत करने से मना किया था। सारे बंदर तो पेड़ की तरफ चले गए, लेकिन एक बहुत ज्यादा शरारती बंदर था। वो आसपास की चीजें छेड़ने लगता था।

तभी उस बंदर ने अधचिरी लकड़ी देख ली। उसने आरी को उसपर रगड़ना शुरू किया। उससे किर्र-किर्र आवाज आने लगी। गुस्से में बंदर ने आरी को पटक दिया। 

उसके बाद उसने लकड़ी जिसमें अटकी थी उस कीले को निकालने की कोशिश करने लगा। दो पाटो में बंटा कीला, स्प्रिंग से अच्छे से जुड़ा हुआ था, उसे निकालना आसान नहीं था।

स्प्रिंग के कारण जब भी कीला थोड़ा हिलता-डुलता, तो उस बंदर को अपने बल पर बड़ा गुमान होता। ऐसा करते समय एक बार बंदर की पूछ उस कीले के बीच में आ गई। बंदर को पता ही नहीं चला था, इसलिए उसने कीले को सरकाने के लिए जोर से झटका मार दिया। 

कीले के बीच की लकड़ी निकल गई और सभी क्लिप जुड़ गई। इसी क्लिप के बीच में बंदर की पूछ फंस गई। बंदर जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

उसी समय मजदूर खाना खाकर लौटने लगे। उनसे खुद को बचाने के लिए बंदर भागने लगा, तभी उसकी पूछ टूट गई। 

कहानी से सीख - हद से ज्यादा शरारतें करने से खुद का ही नुकसान होता है। बड़े आपके भले के लिए चीजें बताते व समझाते हैं, उनकी सुन लेनी चाहिए।

पंचतंत्र की कहानी मूर्ख मित्र | Moorkh Mitra in Hindi

महीमपुर राजा ने अपने राजमहल में एक बंदर को सेवक के पद पर रख रखा था। राजा को उस बंदर पर इतना भरोसा था कि वो उसे सबसे ज्यादा विश्वासपात्र मानता था। 

राजा ने बंदर को पूरे राजमहल और राजदरबार में बिना किसी रोक-टोक के आने-जाने की इजाजत दे रखी थी। बंदर राजमहल में राजा के सारे काम करता और इधर-उधर अपनी मर्जी से घूमता था।

एक दिन राजा अपने कमरे में सो रहा था। गर्मी का मौसम था, इसलिए बंदर से सोझा कि राजा को पंखा कर देता हूं। वो बैठकर उन्हें पंखा झेलना रहा। कुछ ही देर बाद उस कमरे में एक मक्खी आ गई। बंदर उसे भगाने की कोशिश करता है, लेकिन मक्खी सीधे राजा की छाती पर बैठ गई । 

बंदर ने मक्खी को पंखे की मदद से बार-बार हटाने की कोशिश की, लेकिन वो कुछ देर के लिए भागती और दोबारा राजा की छाती पर आकर बैठ जाती। मक्खी को बार-बार ऐसा करते हुए देखकर बंदर को काफी गुस्सा आ गया। 

पंखे से मक्खी नहीं उड़ रही है, यह सोचकर बंदर ने हाथ में तलवार उठा ली। दोबारा जब मक्खी राजा की छाती पर बैठी, तो बंदर ने तलवार से प्रहार कर दिया। तलवार को देखकर मक्खी उड़ गई और राजा का शरीर दो टुकड़े में बट गया।

कहानी से सीख - मूर्ख की मित्रता और मूर्ख को पात्र समझना दोनों ही बेवकूफी है। इससे अच्छा किसी विद्वान्‌ को शत्रु बनान है। 

कबूतर और मधुमक्खी की कहानी | Bee And Dove Story In Hindi

सालों पहले रायवाला जंगल के किनारे एक नदी बहती थी। नदी के पास में ही एक आम का पेड़ था, जिसपर एक कबूतर रहता था। 

कुछ दिनों बाद एक मधुमक्खी रायवाला जंगल के पास उड़ रही थी और वो उड़ते-उड़ते नदी में जा गिरी। पानी की वजह से उसके पंख गीले हो गए और वो पानी से बाहर नहीं निकल पाई।

मधुमक्खी मदद के लिए चिल्लाने लगी। तभी पेड़ पर बैठा कबूतर उड़कर मधुमक्खी को बचाने के लिए नदी के पास पहुंचा। कबूतर ने अपनी चोंच में एक पत्ता लेकर उसे नदी में गिरा दिया।


पत्ता तैरते हुए जब मधुमक्खी के पास पहुंचा, तो वह उसपर बैठ गई। जब उसके पंख सूख गए, तो उसने कबूतर को धन्यवाद कहा और उड़ गई।


कुछ दिनों बाद वह कबूतर गहरी नींद में था। एक शैतान बच्चे ने उस कबूतर को देखा और उसे शरारत सूझी। उसने एक हाथ में पत्थर उठा लिया और कबूतर को मारने लगा। 


एक दिन कबूतर ने जिस मधुमक्खी की मदद की थी, उसने देख लिया कि लड़का कबूतर को नुकसान पहुंचाना चाहता है। 

मधुमक्खी ने सीधे जाकर लड़के के उस हाथ पर डंक मार दिया, जिसमें पत्थर था। डंक लगते ही उसके हाथ से पत्थर नीचे जा गिरा और वो चिल्लाने लगा। 


उसकी चीख सुनकर कबूतर की नींद खुल गई। कबूतर की नींद खुलते ही उसने बच्चे उसके पास मोटा पत्थर और मधुमक्खी को देखा। कबूतर समझ गया कि मेरी जान बचाने के लिए मधुमक्खी ने इस शरारती लड़के के हाथ पर डंक मारा है। 


इस बार कबूतर ने मधुमक्खी को अपनी जान बचाने के लिए धन्यवाद कहा और दाना ढूंढने के लिए आसमान की ओर उड़ गई। 


कहानी से सीख - मुसीबत में फंसे की मदद करना अच्छा कर्म है। यह अच्छा कर्म बाद में लौटकर जरूर आता है। 


मूर्ख बकरी की कहानी | Two Goats Story In Hindi

सालों पहले षठ नामक जंगल में जानवर घास चरते थे। खासकर दो बकरियां रोज उस जंगल में घास चरती थीं। एक बकरी जंगल के एक हिस्से में रहती थी और दूसरी अलग हिस्से में, ताकि घास की किसी को कमी न हो। 

उसी षठ जंगल में एक बड़ी नदी कलकल करते हुए बहती थी। उस नदी के ऊपर एक छोटा-सा पुल बना हुआ था। उस पुल को पार करके जानवर जंगल से दूसरी ओर तक पहुंचते थे। मगर पुल इतना संकरा था कि एक समय पर एक ही जानवर उसे पार कर पाता था।


एक दिन दो बकरियां एक ही समय पर उस संकरे पुल के पास पहुंच गईं। पुल की चौड़ाई कम थी, इसलिए एक बकरी को पीछे हटना था, लेकिन दोनों ही बकरियां जिद्दी थी। दोनों में से कोई भी उस पुल से हटने को तैयार नहीं हो रही थीं। 


पहली बकरी ने कहा, पहले मुझे जाने दो पुल से पार। तुम बाद में चली जाना। दूसरी बकरी बोली, नहीं पहले तुम मुझे जाने दो। उसके बाद तुम चली जाना। जल्दी से पीछे चली जाओ।


जब दोनों बकरियों ने एक-दूसरे की बात नहीं सुनी तो पहली बकरी कहने लगी, पुल पर मैं पहले आई थी। मैं ही पुल पहले पुल पार करूंगी। 


दूसरी बकरी बोली, बिल्कुल नहीं, तुम नहीं मैं पहले इस पुल पर आई थी। फिर पहली बकरी कहने लगी, पहले मैं नदी पार करूंगी। दूसरी कहती, तू नहीं, पहले मैं पार करूंगी। 


कहते-कहते दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगीं। दोनों ने एक-दूसरे को अपनी छोटी-छोटी सीगें मारनी शुरू कर दी। अपनी इस लड़ाई में दोनों भूल गईं कि वो संकरे पुल पर खड़ी हैं। दोनों एक-एक करके लड़ते हुए नदी में गिर गईं। नदी के तेज बहाव में बहकर दोनों बकरियों की मौत हो गई।  


कहानी से सीख - झगड़ा परेशानी को और बढ़ा देता है। परेशानी का समाधान निकालने के लिए झगड़े से बचना चाहिए और दिमाग को शांत रखना चाहिए।




 

पंचतंत्र की कहानी: संगीतमय गधा | The Musical Donkey In Hindi

सोनपुर गांव में रूपक नामक का एक कंजूस धोबी रहता था। उसके पास मोती नाम का गधा। कंजूसी के कारण अपने गधे को रूपक धोबी बहुत कम चारा देता था। 

दिन-ब-दिन धोबी कमजोरी होता जा रहा था। एक दिन घास चरने के लिए धोबी जंगल में निकल गया। वहां एक गीदड़ उसे मिला।


गीदड़ बोला, “भाई मोती तुम बहुत कमजोर हो।” 


गधे ने कहा, “मेरा मालिक मुझसे काम तो बहुत करवाता है, लेकिन खाने-पीने को कुछ नहीं देता। इसी वजह से मेरी ये हालत हो गई है। 


गीदड़ ने कहा, “ दोस्त तुम्हें स्वस्थ बनाने की एक तरकीब है। पास में ही एक बाग है, जिसमें फल-सब्जियां लगी हैं। वहां तुम रात को एक गुप्त रास्ते से जाकर सबकुछ खा सकते हो। मैं भी वही जाता हूं खाने के लिए।”


गधा और गीदड़ दोनों रात में मिलकर उस बाग में चले गए। वहां गधे ने जब इतनी सारे रसीले फल व सब्जियां देखीं, तो वो जल्दी-जल्दी खाने लगा। 


दोनों ने इतना खा लिया था कि उसी बाग में गधा और गीदड़ सो गए। नींद से जागते ही गीदड़ और गधा तेजी से बाग से निकल गए।


रोजाना दोनों रात को मिलकर उस बाग में जाकर भरपेट खा लेते थे। धीरे-धीरे गधा हट्टा-कट्टा हो गया। उसका अंदर घुसा पेट बाहर निकल आया और आंखें चमक उठीं। 


एक दिन बाग में गधा खुशी के मारे लोटपोट करने लगा। गीदड़ ने पूछा, भाई तुम्हें क्या हो गया है?


गधे ने कहा, मैं बहुत खुश हूं। मैं तो आज इतना खुश हूं कि ढेचु-ढेचु करके गाना गाना चाहता हूं। गीदड़ बोला, भूलो मत हम चोरी से यहां खाते हैं। अगर तुमने गाना गाया, तो हम पकड़े जाएंगे।


गधे ने जवाब दिया, तुम मेरे मन को नहीं समझ सकते हो। हम लोग गाने के शौकीन होते हैं। आज तो मैं जरूर गाऊंगा। 


गीदड़ को समझ आ गया कि ये मेरी बात नहीं सुनेगा। अब मुझे यहां से निकलना होगा। वो बोला देखो गधे भाई, तुम सही कह रहे हो। तुम लोग खानदानी गायक हो। अब तुम्हें जितनी जोर से गाना है गा लेना। 


मैं तुम्हारे लिए एक फूल की माला लेने के लिए जाता हूं और तुम अपना गाना मेरे जाने के 5-10 मिनट बाद शुरू करना। तबतक मैं वापस आ ही जाऊंगा। 


खुशी के मारे गधा कहता है, जाओ तुम माला लेकर आना। मैं थोड़ी देर में गाना शुरू करता हूं। 


गीदड़ अपना दिमाग लगाकर उस बाग से पेटभर खाना खाकर निकल गया। कुछ देर बाद गधा जोर-जोर से ढेचु-ढेचु करने लगा। गधे की ढेचु सुनते ही बाग का रखवाला वहां आ गया।


एक लाठी हाथ में उठाकर गधे की पिटाई करते हुए बाग का रखवाला बोला, तू पूरे बाग को बर्बाद कर रहा था। आज हाथ लगा है। तेरी इतनी पिटाई करूंगा कि तू दोबारा किसी के बाग में नहीं घुसेगा। 


इतनी पिटाई होने के बाद गधा बेहोश हो गया। अधमरी हालात में पड़े गधे को बाग के रखवाले ने घसीटकर बाहर निकाल दिया। 


कहानी से सीख : संगीतमय गधा कहानी सीख देती है दूसरों की बातें सुनकर समझनी चाहिए। हरदम मनमानी करना जान पर भारी पड़ सकता है। 

पंचतंत्र की कहानी: चालाक लोमड़ी | Clever Fox Story In Hindi

एक घने जंगल में तीन जानवर लोमड़ी, गधा, और शेर के बीच दोस्ती हो गई। एक दिन तीनों दोस्तों ने मिलकर शिकार करने की सोची, जिसपर सबका बराबर हक होगा। 

फैसला लेते ही तीनों जानवर मिलकर जंगल में शिकार की तलाश के लिए निकल गए। तीनों को एकसाथ हिरण दिखा। सब उसका शिकार करने के लिए हिरण पर टूट पड़े। 


सबसे बचकर भागते-भागते हिरण थक गया। कुछ देर आराम करने के लिए एक पेड़ के बगल में हिरण रुका। उसी वक्त शेर ने हिरण को मार डाला।


तीनों दोस्त शिकार होने पर जश्न मनाने लगे। शेर ने गधे से कहा, इसको सबमें बांट दो। गधे को पता था कि पहले से तय हुआ है कि सबको बराबर हिस्सा मिलेगा, इसलिए उसने तीन टुकड़े कर दिए।


हिरण के तीन टुकड़े देखकर शेर गुस्से से दहाड़ने लगा। दहाड़ने से भी उसका गुस्सा कम नहीं हुआ, तो उसने गधे को बीच से चीरकर दो टुकड़े कर दिए।


यह देखकर लोमड़ी डर गई। वो चालाक थी, इसलिए समझ गई कि शेर को ज्यादा हिस्सा चाहिए। अगर नहीं दिया, तो मेरा हाल भी गधे जैसा ही होगा।


लोमड़ी ने चुपचाप सबसे बड़ा हिस्सा शेर को दे दिया। अपने पास ज्यादा हिस्सा देखकर शेर खुश हो गया। उसने पूछा, “लोमड़ी तुम इतनी समझदार कैसे हो। तुमने इश तरह शिकार बांटा कि मेर मन गदगद हो रहा है। शिकार का इस तरह से हिस्सा लगाना तुम्हें किसने सिखाया।”


लोमड़ी बोली, जंगल के राजा को किस तरह हिस्सा लगाना है, यह सिखने की जरूरत नहीं है। आप राजा हैं और राजा को इज्जत के साथ अधिक परोसा जाता है। मैंने गधे को भी देखा उसकी स्थिति कैसी हुई। उस बात से भी थोड़ी सीख ली मैंने।


शेर बोला, तुम सच में बड़ी बुद्धिमान हो। मुझे तुमने खुश कर दिया है।


कहानी से सीख: हमें खुद की ही नहीं, बल्कि दूसरों की गलतियों से भी सीख लेनी चाहिए। 

पंचतंत्र की कहानी: बोलने वाली गुफा | Bolne Wali Gufa Panchtantra

सालों पहले रायवाला नामक घने जंगल में एक बब्बर शेर रहता था। हर कोई उस शेर से थर-थर कांपता था। अपनी भूख मिटाने के लिए रोज बब्बर शेर जंगल में निकलता और किसी जानवर का शिकार करके वापस घने जंगल में चला जाता। 

बब्बर शेर की जंगल में इतनी दहशत बढ़ गई कि जब भी वो घने जंगल से बाहर निकलता था, सारे जानवर डरकर छुप जाते। एक दिन बब्बर शेर जंगल भर शिकार करने के लिए भटकता रहा। शाम हो गई, लेकिन उसे कोई शिकार खाने के लिए मिला नहीं। 


उसी वक्त उसकी नजर एक गुफा पर पड़ी। बब्बर शेर उस गुफा में चला गया। उसके मन में हुआ कि थोड़ी देर इंतजार करता हूं, जब गुफा का मालिक आएगा, तो उसे खाकर अपनी भूख शांत कर लूंगा।


वो गुफा सियार की थी। दिनभर जंगल में घूमकर सियार शाम को गुफा में लौटा। उसने गुफा के बाहर से अंदर की ओर जाते हुए शेर के पंजे के निशान देखे। वो सतर्क हो गया। 


सियार को शक था कि शेर उसी गुफा में है, इसलिए उसे एक तरकीब सूझी। उसने बोलना शुरू किया, “ऐ गुफा, तुम तो रोज मुझसे बात करती थी, लेकिन आज क्यों कुछ नहीं बोल रही हो।  


बब्बर शेर को लगा कि शायद गुफा रोज बात करती थी, लेकिन आज मेरी वजह से गुफा बात नहीं कर रही होगी।

शेर खुद ही गुफा बनकर जवाब देने लगा। अरे मित्र तुम आ गए। अंदर आ जाओ, बाहर क्या कर रहे हो।  


शेर की आवाज सुनते ही सियार का शक यकीन में बदल गया। वो धीरे-धीरे पीछे बड़ा और अपनी जान बचाकर भाग गया। 


कहानी से सीख - मुश्किल-से-मुश्किल परिस्थिति से बचकर निकला जा सकता है। बस बुद्धि का सही उपयोग किया जाना चाहिए।


पंचतंत्र की कहानी: भूखी चिड़िया | Hungry Bird Story In Hindi

एक घोंसले में टींकू नाम की चिड़िया अपने परिवार के संग रहती थी। उसके 5 भाई-बहन थे, जिनमें टींकू सबसे छोटी थी। टींकू के पंख अभी आए ही थे। रोज उसकी माँ टींकू को घंटाघर के ताल पर उड़ना सिखाती थी। वही पास में पक्षियों को दाना डालने वाली महिला रहती थी। 

रोज वो महिला उस ताल में बहुत सारा दाना और रोटी के टुकड़े डालती थी। टींकू के साथ ही उसका पूरा परिवार वहां आकर अपना पेट भर लेता था।   


एक दिन वो महिला उस जगह को छोड़कर चली गई। टींकू और उसका परिवार महिला से दाना मिलने की आस में बैठे रहे। जब दाना मिले कई दिन हो गए, तो सबने मिलकर दाना जुटाने की कोशिश शुरू कर दी।


बड़ी मुश्किल से टींकू के पिता तीन कीड़े जुटा पाए। परिवार में 7 लोग थे, इससे किसी का पेट नहीं भरेगा उन्हें पता था। उन्होंने टींकू और दूसरे छोटे बच्चों को खिलाने के लिए वो तीन कीड़े रख दिए और दोबारा खाने की तलाश में निकल गए।


टींकू भी अपनी माँ और भाई के साथ खाना ढूंढ रही थी। तभी उसने एक घर के दरवाजे में चोंच मारी। खाने को तो कुछ मिला नहीं, लेकिन घर के एक आदमी ने उसपर राख उड़ेल दी। सबका रंग चांदी जैसा हो गया।


कुछ ही देर में टींकू के पिता को बहुत सारे कीड़े मिल गए। वो अपने परिवार को खुशखबरी देने के लिए घर आए। देखा तो घर में कोई नहीं था। 


जब टींकू अपनी माँ और भाई के साथ लौटी तो उसके पिता ने सबको घर से भगा दिया। दरअसल, राख से उनका रंग चांदी जैसा होने के कारण वो उन्हें पहचान नहीं पाए। 


टींकू दोबारा आई और अपने पिता को समझाने लगी। पिता गुस्से में थे, उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी। 


टींकू तेजी से अपने परिवार को एक नदी में ले गई और सबने साथ में वहां नहाकर निकल गए। अब उनका राख के कारण हुआ बदला हुआ रंग उतर गया।


सब दोबारा घर लौटे, तो टींकू के पिता को बड़ा अफसोस हुआ। उन्होंने कहा, मुझे माफ कर दो। मेरी वजह से तुम सबको बड़ी तकलीफ हुई। 


कहानी से सीख - पहली सीख यह है कि किसी पर निर्भरता अच्छी नहीं है। दूसरी सीख यह है कि हार मानकर इंसान को कभी नहीं बैठना चाहिए।

पंचतंत्र की कहानी: जादुई पतीला | Magical Pot Story in Hindi

एक समय था जब पीतल नाम की नगरी थी। उस नगर में एक गरीब किसान रहता था, जिसके पास कोई जमीन नहीं थी। वह अपना घर चलाने के लिए गांव के जमींदारों के खेतों पर काम करता था। 

सालों पहले उसे पिता की बीमारी के कारण किसान को अपने खेत बेचने पड़े और कर्ज लेना पड़ा था। उसके पिता पूरी तरह से अभी भी ठीक नहीं हुए थे, इसलिए उसकी कमाई कम पड़ जाती थी।


रोज वह किसान सोचता था कि किसी तरह घर की स्थिति ठीक हो जाए, तो उसे थोड़ा आराम मिले। इसी सोच के साथ एक दिन वो घर के पास के ही एक जमींदार मोहन के खेत पर खुदाई कर रहा था। उसकी कुल्हाड़ी किसी बर्तन से टकराई और तेज आवाज हुई।


तभी उसने तेजी से उस जगह के आसपास खुदाई की। खुदाई में उसे एक खाली पतीला मिला। उसके मन में था कि जेवरात से भरा कोई बर्तन मिलेगा, लेकिन खाली पतीला देखकर उसे बेहद दुख हुआ। 


किसान उस पतीले के पास अपनी कुल्हाड़ी को फेंक कर खाना खाने लगा। खाना खाने के बाद जब वो खुदाई शुरू करने के लिए कुल्हाड़ी उठाने लगा, तो वह दंग रह गया। वो एक कुल्हाड़ी ढेर सारी बन गई थी। उसने फिर अपनी टोकरी उस पतीले के अंदर डाली। एक टोकरी से अनेक टोकरी बन गईं।


खुशी के मारे किसान के आंसू निकल आए। वो उस जादुई पतीले को घर ले आया और उसमें रोज अपने औजार डालता। सब औजार ज्यादा हो जाते, तो उन्हें बाजार में बेचकर आ जाता था। औजार बेचते-बेचते उसके पास इतने पैसे आ गई कि वो अच्छा खाने-पीने लगा और अपने पिता का इलाज भी सही से करवा रहा था। 


एक दिन किसान की पत्नी ने अपने गहने उस पतीले में डाल दिए। वो गहने भी अनेक बन गए। नए गहनों को किसान बेच देता। होते-होते किसान ने अपना कर्ज चुका दिया और जमींदार के पास काम करना भी छोड़ दिया। 


किसान की अच्छी स्थिति किसी से छुपी नहीं थी। सभी आस-पास के लोग उसे खुश देखकर प्रसन्न थे, लेकिन जिस जमींदार के यहां से पतीला मिला था, उसे किसान पर शक था। वो एक दिन उसके घर चला गया। उसे जादुई पतीले की कहानी पता चली।


जमींदार ने किसान पर चोरी का आरोप लगा दिया। किसान ने बताया कि मैंने इसे चुराया नहीं, बल्कि मुझे यह आपकी जमीन पर खुदाई के समय मिला था। 


इस बात को सुनते ही जमींदार ने उस पतीले को उठाया और कहा, यह मेरे खेत से मिला है, तो यह मेरा है। किसान ने उसे रोकने की खूब कोशिश की, लेकिन वो जादुई पतीला छीनकर ले गया। 


पतीला घर ले जाते ही जमींदार ने उसमें घर के सारे गहने डाल दिए और अगले दिन उन्हें बेचकर हद से ज्यादा अमीर हो गया।


जमींदार की अमीरी की चर्चा पीतल नगर के राजा कृपाल तक पहुंची। पूछताछ करने पर राजा कृपाल को जादुई पतीले के बारे में पता चल गया। तुरंत राजा ने वो जादुई पतीला अपने पास मंगवाया।


राजा को पतीले के जादु पर भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने राज्य के सभी सामान उसमें डालकर देखने लगा। सबकुछ एक से अनेक होते हुए देखकर राजा काफी उत्साहित हो गया।

उत्साह-उत्साह में राजा खुद ही पतीले के अंदर चला गया। उससे अनेक राजा बाहर आए और खुद को असली राजा कहने लगे। खुद को असली और दूसरे को नकली साबित करने की लड़ाई में उन सभी की मौत हो गई। पतीला भी इस लड़ाई में टूट गया। 


जादुई पतीला टूटने और राजा की मौत की बात जब पूरे नगर में फैली, तो किसान और जमींदार ने सोचा, शुक्र है हमने इसे इस तरह उपयोग नहीं किया। वरना हमारा भी अंत हो जाता।


कहानी से सीख - जादुई पतीला कहानी दो सीख देती है। पहली अधिक उत्सुकता में इंसान मूर्खता करता है। दूसरी यह कि हर चीज का इस्तेमाल संभलकर करना चाहिए।


पंचतंत्र की कहानी: गाय और शेर | The Lion And The Cow Story In Hindi

रामगढ़ गांव के पास एक हरा-भरा जंगल था। रोज गांव के सभी लोगों की गाय-भैस उसी जंगल में घास खाती थीं। एक दिन लक्ष्मी नाम की एक गाय हरी घास खाते-खाते शेर की गुफा के पास पहुंच गई। 


शेर दो दिनों से शिकार की तलाश में था। गाय के पास होने का एहसास होते ही शेर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। गाय को पता ही नहीं था कि वो घने जंगल में शेर की गुफा के समीप खड़ी होकर घास खा रही है। 


एकदम उसे शेर की दहाड़ने की आवाज आई। लक्ष्मी ने अपने आस-पास देखा, तो उसे दूसरी गाय नजर नहीं आई। तभी उसने पीछे देखा, तो शेर की गुफा थी।


शेर भी गाय का ताजा-ताजा मांस खाने के लिए गुफा के बाहर पहुंच गया। शेर ने गाय से कहा, “मैंने दो दिनों से कुछ नहीं खाया है। तुम्हें खाकर मेरी भूख शांत हो जाएगी।


कांपते हुए लक्ष्मी शेर से कहती है, “आज आप मुझे मत खाओ। मेरा एक छोटा बच्चा है। उसे मैं घर जाकर दूध पिलाकर और प्यार करके आपके पास वापस लौट आऊंगी। मेरे लौटने के बाद आप मुझे खा लेना। मुझे एक दिन का समय दे दो।”


शेर ने कहा, “तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकती। मैं तुम्हें यहां से जाने नहीं दूंगा। मैं तुम्हें आज ही खाकर अपनी भूख मिटाउंगा।”


लक्ष्मी रोते हुए गिड़गिड़ाने लगती है। कुछ देर बाद शेर कहता है, “ठीक है! तुम चली जाओ, लेकिन कल अगर तुम नहीं आई, तो मैं तुम्हें और तुम्हारे बछड़े दोनों को खा जाऊंगा। 


लक्ष्मी तेजी से घर जाकर अपने बछड़े को दूध पिलाती है और प्यार से सुला देती है। अगले दिन लक्ष्मी अपने बछड़े को शेर के बारे में सबकुछ बताकर कहती है, “अब तुम्हें अपना ख्याल खुद रखना होगा। मैं अपना वादा पूरा करने जा रही हूं।”


लक्ष्मी को जाता देख बछड़ा रोना शुरू कर देता है, लेकिन वो अपने बच्चे को पीछे मुड़कर नहीं देखती। मजबूत मन के साथ लक्ष्मी सीधे शेर की गुफा में चली जाती है। 


शेर को देखकर गाय लक्ष्मी कहती है, देखो मैंने अपना वादा पूरा किया। मैं तुम्हारे पास आ गई हूं। तुम मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लो।


लक्ष्मी की बातें सुनते ही शेर का रूप बदलकर भगवान का हो जाता है। वो कहते हैं मैं शेर के भेष में बैठकर तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुमने अपना वचन निभाया, इसलिए मैं बहुत खुश हूं। तुम अपने घर वापस जाने के लिए स्वतंत्र हो।


खुशी में झूमती हुई और हरी-हरी घास खाती हुई लक्ष्मी अपने बछड़े के पास पहुंची और उसे शेर की पूरी कहानी सुना दी।


कहानी से सीख - वचन देने के बाद मुकारा नहीं जाना चाहिए। चाहे वचन को पूरा करने के लिए जान ही क्यों न चली जाए।

पंचतंत्र की कहानी: ब्राह्मण का सपना | Brahmin Dream Story in Hindi

सालों पहले रायवाला शहर में एक कंजूस ब्राह्मण हरि रहता था। रोज घर से भिक्षा मांगने के लिए वो निकलता और उसी में गुजारा करता था। भिक्षा में ब्राह्मण को भरपेट खाना मिल जाता था, लेकिन अपनी कंजूसी की आदत के कारण वो आधा पेट खाकर भोजन को बचा लेता था।

कंजूस ब्राह्मण को अमीर बनने का मन था, इसलिए वो सोचता कि इस तरह आधा पेट खाकर मैं कभी-न-कभी अमीर जरूर बन जाऊंगा।

एक दिन उसे भिक्षा में एक अम्मा ने एक किलो सत्तू दे दिया। कंजूस ब्राह्मण ने थोड़ा ही सत्तू खाया और बचा हुआ सत्तू एक बर्तन में निकालकर पास में रख दिया। 

कुछ ही देर में ब्राह्मण को नींद आ गई और वो सपनों की दुनिया में चला गया। उसने सपने में देखा कि शहर में महामारी फैल गई है और सत्तू की कीमत हजारों रूपये तक पहुंच गई। सपने में ही उस कंजूस ब्राह्मण ने सत्तू बेचकर गाय खरीदने और उसका दूध बेचकर भैंस, घोड़ा, सोना, बंगला, सबकुछ खरीदने का प्लान बना लिया। 

यहाँ तक की सपने में ब्राह्मण ने देखा कि उसे एक सेठ की बेटी का रिश्ता आया। उससे शादी करने और अपने बच्चे का नाम मंगल रखने की उसने सोची। नींद में ही हरि ब्राह्मण विचार कर रहा था कि मेरा नन्हा-सा बच्चा छोटे-छोटे कदम चलते हुए कितना अच्छा लगेगा।

सपने में उस ब्राह्मण ने सोचा, जब-जब मेरा बेटा मेरी बात नहीं मानेगा, तब-तब मैं अपनी पत्नी से कह दूंगा उसे ठीक से संभाले। बार-बार कहने के बाद भी अगर पत्नी नहीं मानेगी, तो उसे डराने के लिए पैर उठा लूंगा। इतना सोचते ही उसने नींद में पैर उठा लिया। वो पैर सीधा उस बर्तन पर लगा, जिसमें सत्तू रखा हुआ था। 

बर्तन नीचे गिरा और सारा सत्तू जमीन पर बिखर गया। बर्तन गिरने की तेज आवाज से ब्राह्मण हरि की नींद खुल गई। फर्श पर पड़े सत्तू को देखकर ब्राह्मण अपना सिर पिटने लगा। ब्राह्मण बोला, हाय! नींद, सपना और सत्तू सबकुछ हाथ से निकल गया। 

कहानी से सीख - पंचतंत्र की कहानी ब्राह्मण का सपना यह सीख देती है कि लोभ करना अच्छा नहीं और सपने में भी किसी को दर्द पहुंचाने की सोच पाप है।


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