विश्‍वकर्मा भगवान की कथा | Vishwakarma Katha in Hindi

प्राचीन काल की बात है। मुनि विश्वामित्र के आमंत्रण पर मुनि व संन्‍यासी एक सुनिश्चित जगह पर इकट्ठे हुए। सबके इकट्ठे होने पर एक सभा का आयोजन हुआ। उस सभा का संबोधन मुनि विश्वामित्र ने किया। संबोधन में मुनि ने दुष्ट राक्षसों द्वारा यज्ञ को नष्ट करने और यज्ञ करने वालों को जान से मारने के विषय पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमें जल्दी कोई उपाय ढूंढना होगा, जिससे कि हम पूजा-पाठ, ध्यान-जप जैसे पुण्यात्मक कार्य अच्छे से कर सकें।


मुनि विश्वामित्र की बातें सुनने के बाद मुनि वशिष्ठ ने कहा, “हम लोगों पर पहले भी इस तरह का संकट आया था। उस समय हमें ब्रह्माजी ने उचित मार्ग दिखाया था।" इस बात को सुनते ही मुनि विश्वामित्र व अन्य ऋषि मुनि कहने लगे कि अब हमें भी उनकी ही शरण में चले जाना चाहिए।


सभी की सहमति होने के बाद वहाँ उपस्थित सभी ऋषि-मुनि स्वर्गलोक की ओर चल पड़े। ब्रह्माजी के पास पहुँचते ही विनम्रता के साथ सभी ऋषि-मुनियों ने मिलकर राक्षसों के आंतक से जुड़ी घटनाएँ उन्हें सुनाईं और मदद की गुहार लगाने लगे।


ब्रह्माजी ने ऋषि-मुनियों की बात सुनकर कहा, “इन राक्षसों ने स्वर्ग के देवताओं को भी भयभीत कर रखा है। देवताओं को डराने वाले राक्षस मनुष्यों को कैसे छोड़ देंगे? इनकी प्रवृत्ति ही ऐसी है। हाँ, आप लोगों को इस कष्ट से बचाने में श्री विश्वकर्मा ही आपकी मदद करेंगे। वो हमेशा राक्षसों के संहार के पक्ष में रहते हैं।”


“इस वक़्त धरती पर अग्नि देव के बेटे मुनि अगिंरा श्रेष्ठ पुरोहितों में से एक हैं और श्री विश्वकर्मा के भक्त भी। आप उनके पास जाएँ। वह आपको कोई-न-कोई ऐसा उपाय ज़रूर बताएंगे, जिससे आपके कष्ट दूर हो जाएँगे।”


ब्रह्माजी की बात सुनकर उन्हें प्रणाम करते हुए सभी ऋषि-मुनि वहाँ से अगिंरा मुनि के पास पहुँचे। वहाँ अगिंरा मुनि को भी ऋषि-महात्माओं ने राक्षसों की दुष्टता का सारा किस्सा सुनाया। मुनि ने तुरंत कहा कि इसमें श्री विश्वकर्मा जी ही मदद कर सकते हैं। 


इस पर ऋषि-मुनियों ने पूछा, “आखिर हमें क्या करना होगा। श्री विश्वकर्मा कैसे प्रसन्न होते हैं? यह सब बताइए। उनके प्रसन्न होने के बाद ही हमारे दुख दूर होंगे।”


अगिंरा मुनि ने कहा, “आप लोगों को अपने दूसरे कर्मों को रोकते हुए अमावस्या के दिन मिलकर श्री विश्वकर्मा जी की कथा सुननी और उनकी पूजा-अर्चना करनी होगी। आपके दुखों को वो इस पूजा से प्रसन्न होते ही दूर कर देंगे।”


अगिंरा मुनि से राक्षसों के प्रकोप से मुक्ति पाने का मार्ग सुनकर सभी ऋषि-मुनि अपने आश्रम व कुटिया में पहुँच गए। जैसे ही अमावस्या का दिन आया, वैसे ही ऋषि-मुनियों ने मिलकर एक यज्ञ किया। उस दौरान श्री विश्वकर्मा की कथा सुनकर उनकी पूजा भी की गई।

बड़े प्रेमपूर्वक श्री विश्वकर्मा की कथा सुनने, उपासना करने व यज्ञ करने के कारण श्री विश्वकर्मा जी ने उनके दुखों को हरते हुए सभी राक्षसों को भस्म कर दिया।

अब ऋषि-मुनियों को किसी बात का डर नहीं था। वो निर्भय होकर अपने जप-तप-ध्यान और यज्ञ जैसे पुण्यात्मक कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो गए।

इस कारण कहा जाता है कि श्री विश्वकर्मा की पूजा करने वालों के दुख दूर हो जाते हैं और उन्हें ऊँचा पद प्राप्त होता है।

कहानी से सीख - दृढ़ संकल्प और कड़ी आस्था से आप बड़ी से बड़ी बाधा को पार कर सकते हैं।


Popular Posts