एक नगर में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। कुछ समय के बाद परिवार के मुखिया का देहांत हो गया। विधवा ब्राह्मणी को सहारा देने वाला कोई नहीं था। अपनी जीवनशैली को सुचारू रूप से चलाने के लिए वह अपने बेटे के साथ भिक्षा माँगने के लिए निकल पड़ी। भीख में मिलने वाले अन्न से ही वह अपना और अपने बेटे का पेट भरती थी।
एक दिन भिक्षा मांगने के बाद जब ब्राह्मणी अपने घर वापस आ रही थी तो उसे रास्ते में एक लड़का दर्द से करहाता हुआ दिखा। वह उसके समीप पहुँची तो देखा कि वह घायल था। ब्राह्मणी को उस पर दया आ गई और उसे अपने साथ घर चलने के लिए कहा। वह घायल लड़का चुपचाप ब्राह्मणी के साथ उसके घर चला आया।
वह घायल लड़का विदर्भ के राजा का इकलौता पुत्र था। उस राजकुमार पर शत्रु राज्य के सैनिकों ने हमला किया था और बंदी बनाकर रख लिया था। उसे बंदी बनाने के बाद उसके राज्य पर भी कब्ज़ा कर लिया था। इसी के चलते उसके राज्य में बड़ा युद्ध छिड़ा हुआ था। एक दिन वो दुश्मन सैनिकों के हाथों से किसी तरह बचकर इधर-उधर भाग रहा था। सैनिकों के हमले के चलते वह ज़ख्मी था इसलिए भागते समय कमज़ोरी के कारण गिर गया था।
ब्राह्मणी उसे अपने घर लाकर अपने पुत्र के ही समान प्यार देने लगी। घायल होने के कारण वह ब्राह्मणी के घर में ही रहने लगा। ब्राह्मणी का पुत्र और वह राजकुमार अच्छे दोस्त बन गए। दोनों साथ में खेलते और उठते-बैठते थे। कुछ ही दिनों के बाद गंधर्व लड़की अंशुमति की नज़र उस राजकुमार पर पड़ी। उसके मन में हुआ कि यही मेरे पति होने चाहिए।
राजकुमार को अपने पति के रूप में धारण करने की मंशा से उसने अपने माता-पिता को उससे मिलने के लिए कहा। उन्होंने अपनी बेटी को मना नहीं किया और उसके साथ लड़के से मिलने के लिए ब्राह्मणी के घर आ गए। सबसे मुलाकात के बाद वो अपने घर चले गए। वहाँ से आने पर अंशुमति के माता-पिता ने आपस में बातचीत करते हुए कहा, “लड़का तो दिखने में अच्छा लगता है।”
अगले ही दिन अंशुमति के माता-पिता के सपने में भगवान शंकर आए और उन्होंने उस लड़के के साथ अंशुमति का विवाह कराने का आदेश दिया। सपना टूटते ही दोनों ब्राह्मणी के घर गए और रिश्ता तय कर लिया। कुछ ही दिनों में दोनों का विवाह हो गया। विवाह के बाद राजकुमार अपने राज्य को दुश्मनों से बचाने के लिए रणभूमि के लिए निकल गया। अंशुमति के पिता ने उसकी मदद के लिए उसके साथ गंधर्व सेना भी भेज दी।
ब्राह्मणी प्रतिदिन भगवान से यही प्रार्थना करती थी कि इस राजकुमार लड़के का परिवार व राज्य दुश्मनों से बच जाएं। तभी सोम प्रदोष व्रत का दिन आया। ब्राह्मणी हमेशा उस व्रत को करती थी। इस बार उसने व्रत के दौरान राजकुमार को उसका राज्य वापस मिलने की कामना की। व्रत के प्रभाव से और गंधर्व सेना की मदद से राजकुमार ने दुश्मनों को अपने राज्य से खदेड़ दिया।
दुश्मनों पर विजय हासिल करने के बाद वह अपने माता-पिता और पत्नी के साथ आनंद से रहने लगा। कुछ ही दिनों के बाद उसने ब्राह्मणी के पुत्र को अपने राज्य में प्रधानमंत्री का पद दे दिया। इस तरह से ब्राह्मणी के जीवन से दुख दूर हो गए।
भगवान भोलेनाथ ने प्रदोष व्रत का फल देते हुए जिस तरह ब्राह्मणी के दुख हर लिए, वैसे ही वो अपने सभी भक्तों के दुखों को हरकर उन्हें खु़शियाँ देते हैं। इस कारण सभी को सोम प्रदोष व्रत करना चाहिए और व्रती को नियम से प्रदोष व्रत कथा पढ़नी व सुननी चाहिए।
हर महीने की त्रयोदशी तिथि के सायंकाल में प्रदोष काल पड़ता है। माना जाता है कि इस समय भगवान शंकर कैलाश पर्वत में नृत्य करते हैं। सोमवार के दिन जो भी व्रत करके प्रदोष काल में भोलेनाथ की पूजा करते हैं, उस व्रती की हर इच्छा शिव जी पूरी करते हैं। इसके अलावा पापों को नष्ट करके उनके दुखों को दूर करते हैं।
कहानी से सीख - सच्चे भक्त को भगवान कभी निराश नहीं करते। भले ही थोड़ा समय लगे लेकिन वो भक्त व व्रती के दुखों को दूर अवश्य करते हैं।