सालों पहले श्यामा नाम का राजा फतेहगढ़ में राज करता था। सप्ताह में तीन-चार बार वह शिकार करने जाता था। एक दिन शिकार की खोज में राजा और उसके सैनिक घने जंगल में चले गए।
अचानक आंधी-तूफान चलने लगा। सारे सैनिक आंधी से बचने के लिए इधर-उधर चले गए। आंधी-तूफान रुकने के बाद राजा ने आसपास देखा, तो कोई नहीं था।
राजा थक भी गए थे और भूख-प्यास के मारे उनकी हालत खराब हो गई थी। उसी समय राजा ने तीन लोग आते हुए देखे। राजा ने उनसे कहा, मुझे भूख लगी है, क्या आप मुझे कुछ खाने-पीने को दे सकते हैं।
वो तेजी से घर गए और भोजन-पानी लेकर आ गए। राजा ने खाना खाया और उन्हें बताया कि वो फतेहगढ़ के राजा हैं। यह बताने के बाद राजा ने उन तीनों लोगों से कुछ मांगने को कहा।
एक व्यक्ति ने राजा से धन मांगा, दूसरे ने घर और घोड़ा मांगा और तीसरे ने कहा, मुझे ज्ञान चाहिए। मुझे पढ़ना है। राजा ने अपने महल सबकी इच्छी पूरी कर दी।
एक साल बाद राजा को उन तीनों से मिलने की इच्छा हुई। तीनों को राजा ने अपने महल बुलाया और उनका हाल जानना चाहा।
पहले व्यक्ति ने राजा से कहा, धन मिलने के बाद भी मेरी स्थिति अच्छी नहीं है। मैं गरीब ही हूं। सारा धन मैंने बर्बाद कर दिया। दूसरे ने कहा, मेरा घोड़ा चोरी हो गया था और पैसों के लिए मैंने घर बेच दिया। मेरी स्थिति पहले जैसी ही है।
तीसरे लड़के से जब राजा ने पूछा, तो उसने कहा कि मैं उस पढ़ाई की वजह से आपके दरबार में कार्यरत हूं। मैं खुद से कमाई करता हूं।
कहानी से सीख - जीवन की सबसे बड़ी पूंजी ज्ञान है और कुछ नहीं।