नवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा | Navratri Katha in Hindi

एक समय की बात है, स्वर्गलोक में महिषासुर नामक दैत्य का आतंक फैला हुआ था। वह खुद को अमर करना चाहता था। इसके लिए उसने ब्रह्मदेव की कठिन तपस्या की। उसकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्म देवता ने उससे उसकी मनोकामना पूछी। इसपर दैत्य महिषासुर ने खुद के लिए अमर होने का वरदान मांगा।

तब ब्रह्मा जी ने कहा, "ये संभव नहीं है। इस संसार में हर किसी की मौत लिखी है। तुम कोई दूसरा वरदान मांग लो।" 

ब्रह्मा भगवान की बातें सुनकर दैत्य बोला, "कोई बात नहीं।" फिर आप मुझे यह आशीर्वाद दीजिए कि मेरी मौत न किसी देवता, न किसी राक्षस और न किसी इंसान द्वारा हो। मेरी मौत किसी महिला के द्वारा हो।" ब्रह्मा जी ने उसे वरदान पूरा होने का आशीर्वाद दिया और वहां से चले गए।

इसके बाद दैत्य महिषासुर ने अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया। यह देख सभी देवता भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा के पास पहुंचे और उस राक्षस का अंत करने की गुहार लगाई। इसके बाद तीनों देवता ने अपनी शक्ति से एक आदि शक्ति का निर्माण किया, जिसे दुर्गा का नाम दिया गया।

देवी दुर्गा जब महिषासुर से युद्ध करने गईं तो महिषासुर उन्हें देख मोहित हो गया। उसके मन में दुर्गा से विवाह करने की इच्छा हुई। 

उसने दुर्गा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। इस पर देवी ने कहा, "अगर तुम मुझसे युद्ध में जीत जाते हो तो मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार कर लूंगी।" 

देवी की शर्त सुनकर महिषासुर युद्ध के लिए राजी हो गया। दोनों के बीच यह लड़ाई 9 दिनों तक चली और अगले दिन यानी दसवें दिन देवी दुर्गा ने उसे मार दिया। तभी से यह नवरात्रि का त्योहार मनाया जाने लगा।

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