अगले दिन भी कौवे और कोयल को खाने के लिए कुछ नहीं मिला। उसी वक्त कोयल को एक तरकीब सूझी। उसने कौवे को बोला, “हम कल से भूखे हैं, तो क्यों न तुम मैं जब अंडा दूं, उस तुम खा लेना और तुम अंडा दो, तब उसे मैं खा लूं?”
कौवे राजी हो गया। पहले कौवे ने अंडा दिया, जिसे कोयल खा गई। थोड़ा ही देर में कोयल ने एक अंडा दिया। कोयल ने कौवे को कहा, "तुम अंडा खाने से पहले अपनी चोंच साफ करके आओ।
कौवा नदी के पास गया और उससे चोंच धोने के लिए पानी मांगा।
नदी ने पानी देने के लिए कौवे से घड़ा मांगा
घड़ा लेने कौवा कुम्हार के पास गया।
कुम्हार ने घड़ा बनाने के लिए कौवे से मिट्टी मांगी।
उसी समय कौवा ने धरती माँ से मिट्टी की मांग की।
धरती ने कौवे से मिट्टी खोदने के लिए खुरपी मांगी।
कौवा खुरपी लेने लोहार के पास गया। लोहार ने जल्दी खुरपी बनाकर कौवे की चोंच में रख दी। खुरपी उसी समय बनी थी, इसलिए कौवे की चोंच चल गई और वो मर गया।
कोयल ने यह चतुराई अपना अंडा बचाने के लिए की, जिसकी वजह से कौवे की जान चली गई।
कहानी से सीख: कौवे और कोयल की कहानी से यह सीख मिलती है कि हर किसी पर आंखें बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए और चतुर लोगों से दूरी बनाई रखनी चाहिए।
