वीर तेजा की कहानी | Veer Teja Kahani in Hindi

सालों पहले वीर तेजा की माँ ने अपने बेटे को कहा, “खेतों में जाकर हल चलाओ।” माँ की आज्ञा का पालन करते हुए वीर तेजा अपने खेतों की ओर निकल गए। वो दिनभर खेत जोतते रहे। 

हल जोतते-जोतते दोपहर का समय हो गया। उन्हें ज़ोर से भूख लगी थी, उन्होंने काफ़ी देर भोजन का इंतज़ार किया, लेकिन घर से कोई खाना लेकर खेत नहीं पहुँचा। इस बात पर वीर तेजा को बहुत गुस्सा आया।


कुछ घंटे बीतने के बाद वीर तेजा की भाभी खेत में खाना लेकर पहुँचीं। वीर तेजा ने गुस्से में पूछा, “खाना इतनी देर से क्यों लेकर आई हो?”


एकदम से वीर तेजा की भाभी ने झूठ बोल दिया, “मैं घर के कामों में उलझी हुई थी। अभी भी मैं अपने बच्चों को रोता-बिलखता हुआ छोड़कर रोटी देने के लिए आई हूँ।”


भाभी झूठ बोल रही है, यह वीर तेजा समझ गए। उनके देरी से आने वाली बात से भी ज़्यादा गुस्सा उन्हें उनके झूठ पर आया। गुस्से में उन्होंने कहा, “तुम इस खाने को यहाँ डाल दो। पक्षी या कोई जानवर इसे खा लेगा।”


वीर तेजा की भाभी को उनका यह व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा, “तुम मुझे इतना गुस्सा और तेवर मत दिखाओ। मैं तुम्हारे भाई की पत्नी हूँ। तुम अपनी पत्नी को उसके मायके छोड़कर आ गए हो और यहाँ मेरे साथ ऐसा कड़वा व्यवहार कर रहे हो।”


इतना सुनते ही वह गुस्से में घर गए और अपनी घोड़ी, जिसका नाम लीलण था, उसे लेकर अपने ससुराल पंहेर के लिए निकलने लगे।


उसी समय घर में कुछ-न-कुछ अपशगुन होना शुरू हो गया। घर के सदस्यों ने ज्योतिषी को बुलाकर इसका कारण जानना चाहा। उसने अपनी विद्या से बताया कि यह यात्रा वीर तेजा पर भारी है। यह उनके जीवन की आखिरी यात्रा होगी, वो वहाँ से जीवित घर नहीं लौटेंगे।


इतना सुनते ही वीर तेजा की माँ ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने एक ना सुनी। जैसे ही वीर तेजा अपने ससुराल पहुँचे, वैसे ही गाय ने दूध की भरी बाल्टी में लात मार दी। गाय का दूध निकाल रही उनकी सास ने अपने दामाद को देखा नहीं था, उनके मन में हुआ कि पता नहीं कौन मनहूस आया है। उन्होंने पीछे देखे बिना ही खूब अपशब्द कहे। 


वीर तेजा को गुस्सा आ गया और वो तेज़़ी से वहाँ से बाहर निकल गए। उसी समय उनकी पत्नी ने तेजा जी को पहचान लिया। उसने अपनी सहेली की मदद से अपने पति को मनाने के बारे में सोचा। सोचते ही उसने सहेली लाछाँ को उन्हें वापस घर लेकर आने के लिए भेजा। लाछाँ ने अपने सहेली के पति को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो वापस ससुराल जाने के लिए माने नहीं।


उसने किसी तरह से उन्हें अपने घर रुकने के लिए मना लिया। वीर तेजा उसके घर पहुँचे और आराम किया। उसी रात लाछाँ की गायों को मेर के मीणा चुरा ले गए। वीर तेजा ने गायों को मीणाओं से छुड़ाने के लिए युद्ध किया। वो इतने वीर थे कि सभी गायों को वापस लेकर भी आ गए।


लाछाँ के घर पहुँचने के बाद उन्हें पता चला कि एक बछड़ा मीणाओं के पास ही रह गया है। यह जानते ही वो दोबारा से उनसे युद्ध करने के लिए मंडावरिया गाँव निकल पड़े। 


जाते समय मार्ग में उन्हें एक साँप दिखा, वो आग में जल रहा था। वीर तेजा ने साँप को बचाने के लिए आग में हाथ डाला और उसे बाहर निकाल लिया।


साँप ने गुस्से में उनसे कहा, “तुमने मुझे आग से बाहर क्यों निकाला?”


वीर तेजा बोले, “तुम जल जाते इसलिए तुम्हारी जान बचा ली। इस बात पर तुम इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो? मैंने कोई गलत काम तो नहीं किया है।”


साँप ने फुंकार मारते हुए कहा,  “मैं तुझे अब डस लूँगा।”


वीर तेजा ने प्रार्थना की, “मुझे अभी मत डसो। मैं एक गाय के बछड़े को चोरों के हाथों से छुड़ाने जा रहा हूँ। मैं लौटने के बाद तुम्हारे पास आऊँगा, तब तुम मुझे डस लेना। 


साँप ने वीर तेजा की बात सुनकर उन्हें जाने दिया। 


वहाँ मंडावरिया गाँव पहुँचकर युद्ध के दौरान वीर तेजा गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्होंने बछड़े को मीणाओ से बचाया और सुरक्षित लाछाँ के घर में छोड़ दिया। उसके बाद अपने वचन को निभाने के लिए साँप के पास पहुँच गए। 


साँप भी बड़ी देर से उनका इंतज़ार कर रहा था, लेकिन वीर तेजा को खून में सना हुआ देखकर साँप ने उन्हें काटने से मना कर दिया। उन्होंने साँप से कहा, “आपको मुझे काटना ही होगा। मैंने आपको वचन दिया था। आप मेरे शरीर के घावों को ना देखें। मैं आपके लिए अपने शरीर का एक अंग बिना किसी क्षति के वापस लेकर आया हूँ।”


इतना कहते ही उन्होंने अपनी जीभ साँप के आगे कर दी। साँप ने वीर तेजा को जीभ पर डस लिया। डसते ही साँप ने ख़ुश होकर कहा, “तुम अपने वचन के पक्के हो। इतना रक्त बहने के बाद भी तुमने मुझे वचन में बाँधकर अपनी जीभ आगे कर दी। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि जब भी कोई साँप के दंश से पीड़ित होने पर तुम्हें याद करेगा, तो उस विष का असर कम होने लगेगा।” 


इसी आशीर्वाद के कारण वीर तेजा को नाग देवता के रूप में प्रसिद्धि मिली। लोग उन्हें नाग देव के रूप में पूजने लगे। उनकी मृत्यु होते ही उनकी पत्नी उनके साथ ही सती हो गईं। तेजा की मृत्यु और उनकी पत्नी पैमल के सती होने की ख़बर उनकी घोड़ी लीलण के माध्यम से लोगों ने वीर तेजा के घर तक पहुँचाई। 


अजमेर के सैंदरिया गाँव में साँप के डसने से तेजा की हुई मृत्यु के बाद अजमेर में वीर तेजा जी के नाम से एक मंदिर स्थापित किया गया। वहाँ आयुर्वेद की मदद से सर्पदंश का इलाज मुफ़्त में किया जाता है। आज वीर तेजा जी को अजमेर का मुख्य इष्ट देव भी माना जाता है।


कहानी से सीख - वीर तेजा कहानी से यह सीख मिलती है कि वीरता के कारण हर इंसान लोगों के दिलों में ख़ास जगह बना लेता है। साथ ही इंसान को अपना दिया हुआ वचन हर हालत में निभाना चाहिए।


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