दुर्गा अष्टमी की कथा | Durga Ashtami ki katha in Hindi

दुर्गा अष्टमी के दिन माँ गौरी की पूजा होती है। इससे जुड़ी कथा कुछ इस प्रकार है। सती जी जब अपने पिता के यज्ञ में कूदकर भस्म हो गईं, तो सालों के बाद वह माँ पार्वती के रूप में अवतरित हुईं। उन्होंने शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। यह तपस्या सैकड़ों वर्षों तक चली। उसके बाद कहीं जाकर भोलेनाथ उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए।

एक दिन हंसी-हंसी में भगवान शिव ने उनके रंग के ऊपर कुछ कह दिया। भगवान शिव के मुँह से अपने रंग के लिए ‘काली’ शब्द सुनकर माँ पार्वती को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने अपने रंग को साफ़ करने के लिए तपस्या करने का प्रण ले लिया। वो शिव जी को बिना बताए ही तप करने के लिए निकल गईं। तपस्या करते-करते उन्हें सालों बीत गए। 


इसी तपस्या के दौरान एक भूखा शेर अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार ढूँढता हुआ इधर-उधर भटक रहा था। उसने दूर से ही माँ पार्वती को देखा और उन्हें खाने की मंशा से उनके पास पहुँच गया। वहाँ जाते ही उसका मन बदल गया। माँ पार्वती को अपना आहार बनाने के बजाय वह शेर वहीं बैठकर उनकी रक्षा करने लगा।


इधर, लंबे समय तक पार्वती जी को अपने आसपास नहीं पाकर भगवान शिव स्वयं उन्हें ढूंढने के लिए निकल पड़ते हैं। ढूंढते-ढूंढते जब वह पार्वती जी के पास पहुँचते हैं, तो देखते हैं कि उनका शरीर कुंदन की भांति चमक रहा है। तप के कारण शरीर से गर्म ऊर्जा निकल रही थी। उनके तप से प्रसन्न होकर उसी समय शिव जी ने माता पार्वती को महागौरी होने का वरदान दिया।


वरदान मिलने के बाद माँ पार्वती सीधे स्नान के लिए गंगा नदी चली जाती हैं। उन्होंने एक झलक शेर को देखा और सोचा कि इंसान को जीवित खाने वाला शेर यहाँ क्या कर रहा है। यह देखकर माता पार्वती आगे बढ़ गईं। उधर, माँ पार्वती तप पूरा करने के बाद गंगा में स्नान कर रहीं थीं और इधर, यह शेर उनकी प्रतीक्षा में बैठा हुआ था। 


माँ पार्वती का शरीर गंगा नदी से नहाकर निकलने के बाद और दमकने लगा। उनका रंग पहले के मुकाबले बहुत हल्का था और उनमें इतना तेज था कि कोई भी उन्हें देखकर आकर्षित हो जाता। नहाकर वापस आने के बाद उन्होंने देखा कि वह शेर अभी भी वहीं बैठा हुआ है। उसकी श्रद्धा और अपने प्रति प्रेम देखकर महागौरी ने उस शेर को अपना वाहन बना लिया।  

दुर्गा अष्टमी के दिन भक्तों द्वारा माँ गौरी का पाठ, पूजा, आरती, आदि करने से सुख-समृद्धि, सफ़लता, शांति, और उन्नति मिलती है। रोगों और पापों का नाश होता है। माँ गौरी को प्रसन्न करने के लिए सुबह नहा धोकर छह से बारह वर्ष की कन्याओं को भोजन कराना और दान देना चाहिए। तभी अष्टमी की पूजा को पूरा माना जाता है।


कहानी से सीख - पहली सीख यह मिलती है कि मज़ाक में कभी ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए, जिससे किसी को ठेस पहुँचे। दूसरी सीख यह है कि अगर कुछ करने की ठान लो, तो उसको हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता।


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