सालों पहले कुश जंगल के आसपास दो राज्य थे। दोनों राज्य के राजाओं ने एक दूसरे के राज्य पर कब्जा करने के लिए जंग छेड़ दी। उस युद्ध में राजा सोम की जीत हो गई। युद्ध के अगले दिन आंधी-तुफान चला, जिससे जीत के जश्न के लिए बजाने वाला ढोल-नगाड़ा लुड़कते हुए जंगल में एक पेड़ में जाकर अटक गए।
पेड़ की टहनी आंधी-तुफान के कारण हिलकर ढोल पर लगती थी और ढोल बजने लग जाता। उस जंगल में एक दिन सियार आया उसने खरगोश को गाजर खाते देखा। धीरे-धीरे सियार आगे बढ़कर खरगोश को अपना शिकार बनाने के लिए आगे बढ़ा और उसपर झपट पड़ा।
खरगोश ने खुद को बचाने के लिए तेजी से अपना गाजर सियार के मुंह पर फंसा दिया और भाग गया। सियार ने किसी तरह गाजर मुँह से निकाला। तभी उसे ढोल-नगाड़े की आवाज आई। सियार को लगा कोई जानवर आ गया है।
सियार सीधे उस आवाज की ओर बढ़ने लगा, ताकि पता चले कि जानवर कौन है। जैसे ही उसने ढोल-नगाड़े को देखा, तो उसपर हमला करने के लिए झपट पड़ा। झपटते ही ढम-ढम की आवाजें आने लगी। आवाज से डरकर पेड़ के पीछे छुप गया।
कुछ देर तक जब ढोल की आवाज नहीं आई, तब दोबारा सियार ढोल-नगाड़े पर कूद गया। ढम की आवाज आते ही वह दोबारा भागने लगा। फिर उसने पीछे मुड़कर देखा। तभी वो समझ गया कि वो कोई सामान है, जानवर नहीं।
उसके अंदर ढोल के पास दोबारा जाने का आत्मविश्वास आया और वो ढोल बजाने लगा। सियार ने इतनी देर तक ढोल बजाया और उसपर कूदा कि ढोल फट गया। सियार ने देखा कि ढोल के अंदर खूब सारा खाने-पीने का सामान है। उन्हें खाकर सियार ने अपनी तेज भूख को शांत किया।
कहानी से सीख: सियार और ढोल की कहानी बताती है - किसी भी चीज से डरकर भागना समस्या का समाधान नहीं है। अच्छे से सोचने और समझने पर सही स्थिति का पता चलता है।