अमेरिका से एक दिन गौरव अपने देश भारत आया। अपने परिवार से मिलने के बाद गौरव कुछ दिनों के लिए अपने बड़े पापा के घर चला गया।
एक दिन सुबह-सुबह बड़े पापा ने गौरव को आवाज़ देते हुए पूछा, “अरे नवाब साहब, गाँव जाना है या नहीं? खेत देखने, वहाँ की मिट्टी और हवा को महसूस करने के लिए गाँव चलोगे? इस बार पूरा घर गाँव में ही इकट्ठा होकर दीवाली का त्योहार मनाएगा।”
गौरव सो रहा था, इसलिए दूर से उसकी दादी ने आवाज़ मारते हुए कहा, “क्यों रे! तू इसे सोने क्यों नहीं देता है? सुबह-सुबह तंग कर रहा है।”
तब तक गौरव की नींद खुल चुकी थी। उसने कहा, “अरे नहीं दादी, मेरी नींद खुल गई है और मैं परेशान नहीं हो रहा हूँ। मैं भारत आया हूँ, तो गाँव तो ज़रूर जाऊँगा। वहाँ के हरे पेड़-पौधे, ताज़ी हवा, बड़े-बड़े पेड़ों के बगीचे, आम से लचे पेड़ की सुगंध, ये सब मैं कैसे छोड़ सकता हूँ।”
दादी बोली, “बेटा, आम का मौसम तो जा चुका है। वहाँ तुझे आम तो नहीं दिखेंगे। हाँ, बगीचे, खेत, और गेहूँ की फ़सल देख सकता है। दीपावली में नयी फ़सल का समय होता है।”
तू उठकर तैयार हो जा। उसके बाद चाय-नाश्ता करके ही गाँव के लिए निकलना।”
तब तक गौरव की ताई जी चाय लेकर आ गई। उन्होंने गौरव से कहा, “इस बार दिवाली में हर बार से ज़्यादा धूम होगी। पूरा परिवार जो इकट्ठा होने जा रहा है। तू अमेरिका मेंं दिवाली कैसे मनाता था?”
गौरव ने बताया, “ताई जी, हम तो दिवाली के त्योहार को कुछ दोस्तों के साथ मिलकर क्लब में पार्टी करके मनाते थे। हाँ, वहाँ पर हैलोवीन डे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।”
ताई जी ने जवाब में कहा, “अच्छा, हैलोवीन मनाते हैं।”
तभी ताऊ जी बोल पड़े, “अरे, इस हैलोवीन डे के बारे में हमें भी बताओ। क्या है यह और तुम सब हैलोवीन कैसे मनाते हो?”
दादी ने कहा, “गौरव, तू पहले जल्दी से नहाकर आ जा। फिर हम सबको हॉल में बैठकर हैलोवीन की कहानी सुनाना।”
दादी की बात मानकर गौरव ने चाय ख़त्म की और जल्दी से नहाकर हॉल में आ गया। उसके बाद सबके संग बैठकर गौरव ने हैलोवीन की कहानी सुनानी शुरू की। गौरव ने कहा, “हम भारत में जिस धूमधाम से दिवाली मनाते हैं, उसी धूमधाम से अमेरिका जैसे देशों में हैलोवीन मनाया जाता है।”
“इक्कतीस अक्टूबर की रात को सभी मिलकर एकसाथ हैलोवीन मनाते हैं। इसके लिए दिवाली पर जैसे भारत में कई दिनों पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं, वैसे ही हैलोवीन के लिए भी कुछ दिनों पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं।”
तभी दादी ने पूछा, “क्या यह हैलोवीन सिर्फ अमेरिका में मनाया जाता है?”
गौरव ने जवाब दिया, “नहीं दादी, अमेरिका में ही नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, आयरलैंड, जैसे कई पश्चिमी देशों में हैलोवीन को भव्य तरीके से मनाया जाता है। इसे मनाने के पीछे की वजह है बुरी आत्माओं को घरों से दूर रखना।”
“इस त्योहार को मनाने के लिए घर के बाहर कद्दू को रख दिया जाता है। वो भी कई दिनों पहले। कद्दू के साथ में कुछ खिलौने, प्लास्टिक की मकड़ी, मकड़ी के जाले, भूत, चुड़ैल, आदि के मुखौटे भी रखे जाते हैं।
तभी उसकी ताई जी ने पूछा, “क्या सब्ज़ी वाले कद्दू को घर के बाहर रखते हैं?”
गौरव ने हँसते हुए जवाब दिया, “बीज बनाने के लिए रखे हुए एक बड़े व पके हुए कद्दू का खोल घर के बाहर रखा जाता है। उसके अंदर का गूदा और बीज सबकुछ निकाल दिया जाता है। उसके बाद उस खोल में आँखें, मुँह, आदि बड़े ही सुंदर तरीके से बनाए जाते हैं। फिर उस कद्दू के खोल में एक दीपक जलाया जाता है।”
“यह त्योहार इतना प्रचलित है कि स्कूल में हैलोवीन से जुड़ी कद्दू की प्रतियोगिताएं भी होती हैं। कद्दू के खोल और कद्दू के खोल में छेद करने वाले औज़ार भी वहाँ के बाज़ारों में मिलते हैं।”
तभी ताऊ जी ने पूछा, “जब भूत-प्रेत का अस्तित्व ही नहीं होता, तो कद्दू के खोल और ऐसी अन्य चीज़ों का क्या महत्व?”
तब गौरव ने बताया, “हैलोवीन त्योहार भी दिवाली के त्योहार की तरह अँधेरे पर रोशनी की जीत का जश्न है। दरअसल, हज़ारों साल पहले केल्ट जाति वाले, प्रकृति में मौजूद शक्तियों की पूजा करके अपनी फ़सल की सुरक्षा की कामना करते थे। एक नवंबर को इनका नया साल आता है। इस दिन ये अपनी फ़सल की उपज की ख़ुशी मनाते थे।”
इससे ठीक एक दिन पहले इक्कतीस अक्टूबर को इस समाज में ‘साओ इन’ त्योहार मनाया जाता था। मान्यता थी कि उस दिन सभी मरे हुए लोगों की आत्माएं धरती पर विचरण करने के लिए आती हैं। इन सभी को प्रसन्न करने के लिए पहले इनकी पूजा होती थी, फिर एक प्रचलित पहाड़ी पर आग जलाई जाती थी। उस आग का एक अँगारा हर व्यक्ति अपने घर लेकर आता था और एक नवंबर यानी अपने नए साल के दिन घर में नए साल की नयी आग जलाते थे।”
ताऊ जी ने पूछा, “नए साल की नयी आग, इसका क्या मतलब होता है?”
गौरव ने जवाब दिया, “ताऊ जी, यह उस समय की बात है, जब माचिस का आविष्कार होना बाकि था। तब लोग आग जलाने के लिए पत्थर या जली हुई आग का सहारा लेते थे। पत्थर से आग जलाना मुश्किल होता था, इसलिए घर में कुछ-न-कुछ जलाकर ही रखा जाता था और पहाड़ों पर अलाव जलते थे। उसी अलाव में वो इक्कतीस अक्टूबर को कटी हुई फ़सल का बचा हुआ भाग जलाया करते थे।”
“जलाने के बाद उस आग के अँगारे को लोग घर लेकर जाते थे। वह अँगारा बुझ न जाए, इसलिए उसे हवा-पानी से बचाने के लिए किसी भी फल के खोल में डालकर घर तक पहुँचाने की कोशिश करते थे। वो मानते थे कि इक्कतीस तारीख़ को धरती पर आने वाली आत्माएं इस अँगारे के कारण उनके पास नहीं आएँगी।”
“कुछ लोग अँगारे से एक दीप जलाकर कद्दू के फल के खोल में रखकर घर लेकर जाते थे। कद्दू के खोल पर मुँह, आँख बनाने से एक तो वह टॉर्च जैसा काम करता था और दूसरा किसी राक्षस के सिर जैसा लगता था। घर पहुँचते ही लोग इसे खिड़की पर या आसपास के किसी पेड़ पर टांग देते थे। आजकल इसे घर के बाहर रखा जाने लगा है। इसी आग से नए साल के दिन आग जलाई जाती है। इसी वजह से इसे नए साल की नयी आग कहा जाता है।”
“हैलोवीन के दिन लोग मुँह पर नक़ाब और डरावने कपड़े पहनकर बहुरुपिया बनते हैं। वहाँ भूत-प्रेत के डरावने कपड़े, मुखौटे, आभूषण, मेकअप सब बाज़ार में मिलता है। कुछ लोग नक़ाब पहनने की जगह मुँह पर डरावना पेंट करवा लेते हैं।”
“हैलोवीन का त्योहार मनाने के लिए बच्चे अपने हाथ में एक बैग व डिब्बा लेकर लोगों के घरों में जाते हैं। वहाँ पहुँचकर वो लोगों से कहते हैं कि ‘ट्रिक या ट्रीट’। मतलब बच्चे बड़ों से कह रहे होते हैं कि आप मुझे ट्रीट यानी पार्टी दोगे या मैं आपपर जादू कर दूँ। लोग तो पहले से ही बच्चों के लिए चॉकलेट और अन्य मिठाइयाँ लेकर उनका इंतज़ार कर रहे होते हैं। इसलिए, हँसकर ट्रीट कहते हैं और उन्हें उनकी मनपसंद चीज़ें दे देते हैं।”
“बच्चे अंग्रेज़ी में धन्यवाद कहते हुए आगे बढ़ जाते हैं। वो देर रात तक इसी तरह घर-घर जाकर कुछ-न-कुछ लेकर ही आते हैं।”
“इस दिन हर घर गली-मोहल्ला रोशनी में डूबा होता है। केल्ट जाति के लोग भी एक तारीख़ को घर में दीप जलाकर रोशनी करते थे। उनका मानना था कि इक्कतीस अक्टूबर को भूत आए और उनकी पूजा अच्छे से हुई, तो वो धरती से वापस चले जाते हैं। वो अपने साथ जो अँधेरा और बुरी शक्तियाँ लाए थे वो भी उनके साथ चली जाती हैं। अगले दिन वो नया दीप जलाकर उसी अँधेरे के जाने का जश्न मनाते हैं। इसी वजह से इस त्योहार को भी अँधेरे पर प्रकाश की जीत से जोड़कर देखा जाता है।”
इतनी कहानी सुनकर दादी बोली, “बेटा, तुमने हमें बड़ी अच्छी कहानी सुनाई। हमें भी आज पश्चिमी देशों के एक त्योहार के बारे में पता चल गया।” वहाँ बैठे सभी लोगों ने दादी की बातों का समर्थन किया।
तभी ताईजी बोलीं, “इस कहानी के चक्कर में नाश्ता ठंडा हो गया है। अब मैं इसे गर्म करके ला रही हूँ। आप सब जल्दी से उसे खाकर गाँव के लिए रवाना हो जाएं।”
फिर उन्होंने हँसते हुए कहा, “बस, वहाँ से लौटते समय आप लोग आँख और मुँह वाला कद्दू मत लेकर आना।”
इस बात पर घर के सभी सदस्य ठहाके लगाकर हँसने लगे। तो कुछ ऐसी थी हैलोवीन की कहानी।
कहानी से सीख - हर त्योहार को मनाने के पीछे कोई-न-कोई वजह व मान्यता ज़रूर होती है। हमें अपने त्योहारों के साथ ही दूसरों के त्योहारों के बारे में भी जानना चाहिए।