जैन कैलेंडर 2023 के हिसाब से आज रोहिणी व्रत है। यह व्रत रोहिणी नक्षत्र पर पड़ता है। इस व्रत को करने से परिवार में खुशहाली आती है। पत्नियाँ अपने पति की लंबी आयु के लिए भी रोहिणी व्रत रखती है। मन को पवित्र करने वाला और आशीर्वाद देने वाले रोहिणी व्रत कथा कुछ इस तरह है।
रोहिणी व्रत कथा
रोहिणी व्रत की कथा चंपापुरी राज्य के महाराज माधवा से संबंधित है। राजा माधवा की पत्नी का नाम लक्ष्मीपति था। इन दोनों की 7 संतानें थी। राजा को अपने सभी बच्चों में सबसे ज्यादा प्यार अपनी बेटी रोहिणी से था।
बेटी जब बड़ी हुई, तो राजा ने एक ज्ञानी महापुरुष से पूछा, “मुझे भविष्य जानना है, कैसा पति मेरी बेटी को मिलेगा?”
ज्ञानी महापुरुष बोले, “राजन! आपकी बेटी के भाग्य में हस्तिनापुर के राजकुमार हैं। उन्हीं से उसका विवाह होगा।”
कुछ समय बाद राजा माधव ने बेटी की शादी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। सभी जाने-माने राजाओं को महाराज माधव ने न्योता दिया था। सभी उस स्वयंवर में आए। राजा माधव की बेटी रोहिणी को हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक पसंद आ गए। उन्हें वरमाला पहनाकर उसे अपना जीवन साथी चुन लिया।
दोनों का भव्य विवाह करवाकर राजा ने रोहिणी को राजकुमार अशोक के साथ उसके घर भेज दिया। दोनों खुशी-खुशी हस्तिनापुर में रहने लगे। राजकुमार एक दिन मुनिराज श्रीचरण से मिले। राजकुमार अशोक ने बहुत सी बातें पूछने के बाद अपनी पत्नी रोहिणी के बारे में पूछा, “पत्नी रोहिणी एकदम शांत रहती है, क्या आप उसके बारे में कुछ बताएंगे?”
मुनिराज श्रीचरण बोले, “यह स्वभाव उनके पुराने जन्म के कारण है। मैं रोहिणी की कथा सुनाता हूं कि वो कौन थी और क्या उसकी कहानी है।”
हस्तिनापुर में एक वस्तुपाल राजा थे। उनका एक अच्छा दोस्त था - धनमित्र। एक दिन धनमित्र के घर एक बेटी हुई। पैदा होते ही उसके शरीर से तेज गंध आ रही थी। तभी सबने मिलकर उसका नाम दुर्गंधा रख दिया।
जब वह बड़ी हुई तो धनमित्र ने श्रीषेण नामक एक आदमी को पैसों का लालच देकर उसका विवाह अपनी बेटी से करवा दिया। वो दुर्गंधा के शरीर से निकलती गंध को सहन नहीं कर पाया। परेशान होकर श्रीषेण एक महीने में ही उसे छोड़कर जंगल चला गया।
दुर्गंधा दोबारा अपने पिता के घर चली गई। बेटी को लेकर उसके पिता धनमित्र एक मुनि के आश्रम गए और उससे बेटी के शरीर से गंध आने का कारण पूछा।
मुनि ने बताया कि आपकी बेटी पहले राजा भूपाल की पत्नी थी। उसे अपनी सुंदरता का घमंड था। एक दिन राजा अपनी पत्नी के साथ जंगल गए। वहाँ एक मुनि आए, इसलिए राजा ने उनके लिए कुछ भोजन बनाने के लिए कहा। उसके मन में हुआ कि मैं रानी हूँ फिर भी मुझे काम करने के लिए बोल रहे हैं।
रानी ने गुस्से में जहरीला कड़वा कद्दू बना दिया। खाना खाते ही मुनि की मृत्यु हो गई। बाद में राजा को पता चला कि उनकी पत्नी ने जहरीला कद्दू मुनि को खिलाया है। उसे राजा ने अपने महल से निकाल दिया और पाप के चलते उसकी कोढ़ से मौत हो गई।
मौत के बाद पहले पशु बनी और उसके बाद दुर्गंध फैलाने वाली लड़की के रूप में पैदा हुई है।
यह सब सुनकर धनमित्र ने मुनि से पूछा, “क्या किसी तरह से यह दुर्गंध दूर नहीं की जा सकती है।”
मुनि ने कहा, “रोज यह रोहिणी व्रत करेगी, तो गंध दूर हो जाएगी। आपकी बेटी को पूरे पांच साल पांच महीने तक यह व्रत करते रहना होगा। दिनभर भूखे रहने के बाद दान और पूजा-पाठ करना होगा।”
रोहिणी व्रत करने के बाद दुर्गंधा के शरीर से दुर्गंध मिट गई। हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक ने इतनी कहानी सुनने के बाद मुनि से पूछा, तो उसी व्रत के कारण इनका जन्म रोहिणी के रूप में हुआ है?
मुनिराज ने कहा, “हां, दुर्गंधा का ही व्रत करने के बाद रोहिणी बनकर पैदा हुई। पिछले व्रत और तप के कारण अब आपकी पत्नी का स्वभाव एकदम सात्विक हो गया। वो चंचल नहीं हैं, इसलिए चुप और शांत रहती हैं।”
राजकुमार ने मुनिराज से अपने जीवन के बारे में पूछा।
मुनिराज ने कहा, “आप भील थे और पाप कर्म के कारण नरक चले गए। उसके बाद कुरूप होकर पैदा हुए। हर कोई आपसे घृणा करता था। रोहिणी व्रत से आपका रूप ठीक हुआ और पाप खत्म हो गए। उसके बाद राजा के घर में राजकुमार अशोक के रूप में आपका जन्म हुआ।
रोहिणी व्रत इतना फलदायी है कि आप दोनों ने अपने पापों को क्षय करके पुण्य कमाया। रोहिणी व्रत की विधि आसान है, लेकिन उसे जानना जरूरी है।
हे राजकुमार, आप अगर दोबारा रोहिणी व्रत करना चाहते हैं तो उसके लिए सुबह उठकर नहाना होगा। उसके बाद रोहिणी व्रत का संकल्प लेना होता है। भगवान की पूजा करके पंचरत्न, तामे या सोने की मूर्ति स्थापित करनी होगी। धन की कमी हो, तो सामान्य मूर्ति भी स्थापित कर सकते हैं। उसके बाद फल, फूल, कपड़े, आदि चढ़ाकर दान करके रोहिणी व्रत कथा सुननी होगी।”
“इसके बाद दान-पुण्य करके शाम को दोबारा पूजा करके फलाहार करना होगा। शाम ढलने के बाद व्रती को कुछ नहीं खाना चाहिए। इसी से रोहिणी व्रत पूरा होता है और इसका फल प्राप्त होता है।”
रोहिणी व्रत अगले दिन जाकर पूरी तरह समाप्त होता है। मतलब रोहिणी नक्षत्र के दिन होकर मार्गशीर्ष तक चलता है।
कहानी से सीख - कर्म हमेशा इंसान के पीछे लगा रहता है, इसलिए अच्छे कर्म करके पुण्य का भागी बनना चाहिए। ईष्या से सिर्फ पाप बढ़ता है।