माँ लक्ष्मी व्रत कथा | Maa Lakshmi Vrat Katha in Hindi

सालों पहले देवदत्त नाम का एक गरीब ब्राह्मण पालनहार गाँव में रहता था। वह हर दिन भगवान विष्णु की पूजा-वंदना बड़ी श्रद्धा से करता। उसकी भक्ति से खुश भगवान ने उसे एक दिन दर्शन दिए और कहा, “तुम मुझसे मनचाहा वरदान मांग लो।” 

ब्राह्मण ने बड़े प्रेम से कहा, “प्रभू! मेरे घर में लक्ष्मी माता का निवास हो, यही मेरी इच्छा है।”


भगवान ने उस ब्राह्मण को बताया, “मेरे मंदिर के सामने ही एक महिला रोज गाय के गोबर के उपले बनाती है। तुम प्रेम से उन्हें अपने घर आने के लिए आमंत्रित करो। वह साक्षात लक्ष्मी हैं। वो जिस दिन तुम्हारे घर कदम रखेंगी, तुम्हारा घर धन-संपत्ति से भर जाएगा।” इतना कहकर भगवान अंतर्धान हो गए। 


अगले दिन भगवान के कहे अनुसार देवदत्त ब्राह्मण उस महिला के घर गया और उन्हें अपने घर आना का निमंत्रण दिया। 


बिना किसी बात के इस तरह ब्राह्मण से निमंत्रण मिलते ही लक्ष्मी माता समझ गईं कि भगवान विष्णु ने ही इसे ऐसा करने के लिए कहा होगा।


यह सोचते ही माँ लक्ष्मी ने कहा, “मुझे तुम्हारा निमंत्रण मंजूर है, लेकिन मेरे आने से पहले तुम्हें महालक्ष्मी व्रत करना होगा। यह व्रत 16 दिनों तक चलेगा। तुम्हें व्रत के आखिरी दिन चंद्र देव को अर्घ्य देकर मुझे उत्तर की दिशा की ओर मुँह करते हुए पुकारना होगा। मैं उस दिन जरूर आऊँगी।”


ब्राह्मण ने मां लक्ष्मी के कहे अनुसार 16 दिन तक व्रत किया। ब्राह्मण का यह व्रत शुक्ल पक्ष भाद्रपद महीने की अष्टमी से अश्विन माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक व्रत चला।


व्रत के आखिरी दिन ब्राह्मण ने प्रेमपूर्वक माँ लक्ष्मी को पुकारा। उसी समय माँ ने ब्राह्मण के घर को धन-संपत्ति से भर दिया। इसी दिन से मां लक्ष्मी व्रत की अहमियत लोगों को समझ आने लगी। इस दिन यह माँ लक्षमी व्रत कथा सुनने के बाद दिनभर खाली पेट रहना होता है।


कहानी से सीख - भगवान की भक्ति और उनके प्रति श्रद्धा कभी खाली नहीं जाती। उसका फल भगवान देर-सवेर जरूर देते हैं।


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