सालों पहले किसी जंगल में एक नामी साहूकार अपने परिवार के साथ रहता था। साहूकार की बेटी पूजा-पाठ में बड़ा विश्वास करती थी। वो रोज़ाना पीपल के पेड़ पर ताज़ा जल चढ़ाती थी। उसी पीपल के पेड़ में माँ लक्ष्मी भी रहती थी। एक दिन माँ लक्ष्मी ने उस व्यापारी की बेटी से पूछा कि क्या तुम मेरी मित्र बनोगी? इस सवाल को सुनते ही नामी व्यापारी की बेटी ने कहा कि मैं आपको अपने पिता से पूछकर ही इस बारे में बता पाऊँगी।
पीपल के पेड़ से सीधा वह अपने व्यापारी पिता के पास गई। उसने अपने पिता को बताया कि एक लड़की मुझसे दोस्ती करना चाहती है। उसके पिता ने उसे लड़की से दोस्ती करने की आज्ञा दे दी। पिता की इजाज़त लेकर वह पीपल के पेड़ के पास गई और माँ लक्ष्मी से दोस्ती कर ली।
कुछ ही दिनों में दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई। दोनों एक-दूसरे से अपने मन की बातें करते। एक दिन माँ लक्ष्मी उस नामी व्यापारी की बेटी को अपने साथ घर ले गईं। वहाँ उसने अपनी मित्र व व्यापारी की बेटी का अच्छे से स्वागत-सत्कार किया। भोजन में विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थ परोसे। खाना खाने के बाद दोनों खेलते हुए घर से बाहर आ गए।
जब व्यापारी की बेटी अपने घर जाने लगी, तो माँ लक्ष्मी ने पूछा, “अब तुम मुझे अपने घर आने का न्योता कब दोगी?” व्यापारी की बेटी ने एकदम से माँ लक्ष्मी को अपने घर आने का आमंत्रण दे दिया। माँ लक्ष्मी को घर आने के लिए कहते ही उसका मन उदास हो गया, क्योंकि उनके घर की स्थिति ठीक नहीं थी। उसके मन में हुआ कि मैं अपनी दोस्त का स्वागत अच्छी तरह से कर पाऊँगी या नहीं। इस बात को सोच-सोचकर वह परेशान होने लगी।
व्यापारी ने अपने बेटी के चेहरे की परेशानी को देख लिया। उसने पूछा, “क्या बात है तुम इतनी चिंतित क्यों हो?”
व्यापारी की बेटी ने सारी बात अपने पिता को बता दी। पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम जल्दी जाकर एक मिट्टी की चौकी बना लो। उसके बाद उसकी साफ़-सफ़ाई करना और चार बाती वाला एक दीप जलाकर माँ लक्ष्मी का जप करो।”
पिता ने जैसा कहा वह वैसा ही करने लगी। उसी वक्त एक चील किसी रानी का बेशकीमती हार लेकर हवा में तेज़ी से उड़ रही थी। वह नौलखा हार अचानक से चील के मुँह से छूटकर व्यापारी की बेटी के समीप गिर गया। व्यापारी की बेटी ने जल्दी से उस हार को बेचकर खाना बनाया। थोड़ी देर बाद माँ लक्ष्मी अपने साथ भगवान गणेश को लेकर व्यापारी की बेटी के घर पहुँच गईं।
व्यापारी की बेटी ने अपनी मित्र और उसके साथ आए अन्य महमान की भी खूब ख़ातिरदारी की। अपनी दोस्त की सेवा और प्रेम देखकर माँ लक्ष्मी बहुत खुश हुईं। उन्होंने उसी वक़्त व्यापारी के घर की गरीबी और दुखों को दूर कर दिया।
इस तरह माँ लक्ष्मी की कृपा से वह व्यापारी अपने परिवार के साथ सुख से जीवन जीने लगा। उसकी बेटी भी अन्य अमीर लोगों की तरह ही रहने और खाने लगी।
कहानी से सीख - किसी भी कार्य को करने व अतिथि के स्वागत के लिए सेवाभाव के साथ ही प्रेमभाव भी बेहद ज़रूरी है।
