छठ पूजा व्रत कथा | Chhath Puja Vrat Katha in Hindi

सालों पहले एक राजा प्रियव्रत थे उन्हें संतान की बहुत चाहत थी। सालों से वे और उनकी धर्मपत्नी मालिनी संतान सुख न मिलने के कारण दुखी थे। कुछ दिनों के बाद दोनों राजा-रानी संतान की इच्छा लेकर महर्षि कश्यप के पास गए। उन्होंने राजा-रानी की इस चाहत को पूरा करने के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ संपन्न होने के बाद प्रसाद के रूप में महर्षि ने रानी को खीर देकर कहा कि यह आशीर्वाद है। इसे आप खा लेना।

छठ पूजा व्रत कथा | Chhath Puja Vrat Katha in Hindi
महर्षि कश्यप से खीर मिलते ही रानी ने उसे बड़ी श्रद्धा के साथ खाया। उस प्रसाद के सेवन करते ही रानी को गर्भ ठहर गया। रानी की गर्भवती होने की खबर मिलते ही राजा ने खुशी में जश्न का ऐलान किया। पूरा राज्य राजा-रानी की खुशी में डूब गया। 


ठीक 9 महीने बीतने के बाद रानी ने एक बेटे को जन्म दिया। बेटे का जन्म होते ही सब हैरान हो गए, क्योंकि वह मृत पैदा हुआ था। यह बात जैसे ही राजा को पता चली तो वो इतने दुखी और निराश हो गए कि उन्होंने खुद का जीवन खत्म करने की ठान ली। 


जैसे ही राजा प्रियव्रत आत्महत्या करने के लिए आगे बढ़ने लगे, वैसे ही भगवान श्री की मानस पुत्री देवसेना वहाँ प्रकट हो गईं। उन्होंने राजा प्रियव्रत से कहा, “मैं सभी को संतान सुख देती हूँ। मुझे लोग पष्ठी देवी के नाम से जानते हैं। मेरी सच्चे मन से जो भी भक्त पूजा-अर्चना करता है मैं उसकी पुत्र प्राप्त करने की मनोकामना को पूरा करती हूँ। राजन आप भी अपने पुत्र रत्न को पाने के लिए मेरी पूजा विधिविधान से करेंगे, तो मैं आपको भी पुत्र का वरदान दूँगी।”


इतना कहकर वह देवी वहाँ से ओझल हो गईं। राजा प्रियव्रत ने भी उनकी बात सुनकर अपने जीवन को खत्म करने का विचार त्याग दिया। पष्ठी देवी ने जैसे-जैसे कहा था राजा प्रियव्रत ने संतान प्राप्ति के लिए वैसे-वैसे ही कार्तिक शुक्ल की पष्ठी तिथि के दिन उनकी पूजा की। पूरी विधि पूर्वक देवी पष्ठी की पूजा करने के बाद रानी मालिनी को गर्भ ठहर गया। इस बार उन्होंने फिर 9 महीने पूरे होने के बाद एक बेटे को जन्म दिया। इस बार बेटा पूरी तरह स्वस्थ था। 


स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होने पर राजा-रानी दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। तभी से लोगों के बीच छठ का पावन पर्व प्रचलित हुआ है।


कहानी से सीख - पूजा-अर्चना और व्रत हमेशा कल्याणकारी होते हैं। बस, हर व्रत को उसकी सही विधि के अनुसार ही करना चाहिए।

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