रामगढ़ गांव के पास एक हरा-भरा जंगल था। रोज गांव के सभी लोगों की गाय-भैस उसी जंगल में घास खाती थीं। एक दिन लक्ष्मी नाम की एक गाय हरी घास खाते-खाते शेर की गुफा के पास पहुंच गई।
शेर दो दिनों से शिकार की तलाश में था। गाय के पास होने का एहसास होते ही शेर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। गाय को पता ही नहीं था कि वो घने जंगल में शेर की गुफा के समीप खड़ी होकर घास खा रही है।
एकदम उसे शेर की दहाड़ने की आवाज आई। लक्ष्मी ने अपने आस-पास देखा, तो उसे दूसरी गाय नजर नहीं आई। तभी उसने पीछे देखा, तो शेर की गुफा थी।
शेर भी गाय का ताजा-ताजा मांस खाने के लिए गुफा के बाहर पहुंच गया। शेर ने गाय से कहा, “मैंने दो दिनों से कुछ नहीं खाया है। तुम्हें खाकर मेरी भूख शांत हो जाएगी।
कांपते हुए लक्ष्मी शेर से कहती है, “आज आप मुझे मत खाओ। मेरा एक छोटा बच्चा है। उसे मैं घर जाकर दूध पिलाकर और प्यार करके आपके पास वापस लौट आऊंगी। मेरे लौटने के बाद आप मुझे खा लेना। मुझे एक दिन का समय दे दो।”
शेर ने कहा, “तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकती। मैं तुम्हें यहां से जाने नहीं दूंगा। मैं तुम्हें आज ही खाकर अपनी भूख मिटाउंगा।”
लक्ष्मी रोते हुए गिड़गिड़ाने लगती है। कुछ देर बाद शेर कहता है, “ठीक है! तुम चली जाओ, लेकिन कल अगर तुम नहीं आई, तो मैं तुम्हें और तुम्हारे बछड़े दोनों को खा जाऊंगा।
लक्ष्मी तेजी से घर जाकर अपने बछड़े को दूध पिलाती है और प्यार से सुला देती है। अगले दिन लक्ष्मी अपने बछड़े को शेर के बारे में सबकुछ बताकर कहती है, “अब तुम्हें अपना ख्याल खुद रखना होगा। मैं अपना वादा पूरा करने जा रही हूं।”
लक्ष्मी को जाता देख बछड़ा रोना शुरू कर देता है, लेकिन वो अपने बच्चे को पीछे मुड़कर नहीं देखती। मजबूत मन के साथ लक्ष्मी सीधे शेर की गुफा में चली जाती है।
शेर को देखकर गाय लक्ष्मी कहती है, देखो मैंने अपना वादा पूरा किया। मैं तुम्हारे पास आ गई हूं। तुम मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लो।
लक्ष्मी की बातें सुनते ही शेर का रूप बदलकर भगवान का हो जाता है। वो कहते हैं मैं शेर के भेष में बैठकर तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुमने अपना वचन निभाया, इसलिए मैं बहुत खुश हूं। तुम अपने घर वापस जाने के लिए स्वतंत्र हो।
खुशी में झूमती हुई और हरी-हरी घास खाती हुई लक्ष्मी अपने बछड़े के पास पहुंची और उसे शेर की पूरी कहानी सुना दी।
कहानी से सीख - वचन देने के बाद मुकारा नहीं जाना चाहिए। चाहे वचन को पूरा करने के लिए जान ही क्यों न चली जाए।