लोहड़ी की कथा का संबंध सुंदरी नामक लड़की और दुल्ला भट्टी योद्धा से जुड़ी है। प्रचलित लोहड़ी कथा इस प्रकार है - गंजीबार नामक क्षेत्र में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। उनकी एक बेटी थी, जिसका नाम सुंदरी था। उसका रूप भी उसके नाम जैसा ही सुंदर था। उसकी सुंदरता की हर कोई मिसाल देता था।
उस ब्राह्मण की बेटी की सुंदरता की चर्चा एक दिन गंजीबार के शासक के पास बैठे कुछ लोगों ने कर दी। उस राजा के मन में हुआ कि इतनी सुंदर लड़की कहीं है, तो उसे मेरे राजमहल में होना चाहिए। उसकी मौजूदगी से मेरे हरम (महिलाओं के रहने की जगह) में चार चाँद लग जाएंगे।
उसी दिन गंजीबार के राजा ने मन-ही–मन ठान लिया कि वो उस ब्राह्मण की बेटी को अपने राजमहल ज़रूर लेकर आएगा। उसने सुंदरी के पिता को लोभ देना शुरू कर दिया। उसने ब्राह्मण को संदेशा भिजवाकर कहा, “आप अपनी बेटी को हमारे हरम में भेज दीजिए, उसके बदले हम आपके जीवन को खु़शहाल बना देंगे। आपको धन-दौलत किसी चीज़ की कमी नहीं होने देंगे।”
गंजीबार का राजा कुछ दिनों के अंतराल में ऐसी ही प्रलोभन वाली चिट्ठियाँ ब्राह्मण को भेजता रहता था। ब्राह्मण को अपनी बेटी से बड़ा प्रेम था। वो उसे हरम में नहीं भेजना चाहता था, इसलिए वो परेशान रहता था। उसने इस परिस्थिति से निपटने के बारे में बहुत सोचा, लेकिन कोई उपाय उसे सूझ नहीं रहा था।
एक दिन अचानक उसके दिमाग़ में दुल्ला भट्टी योद्धा का ख़्याल आया। वो एक डाकू था, लेकिन ग़रीबों की ख़ूब मदद करता था। इसी वजह से लोगों के मन में उसके लिए प्यार की कमी नहीं थी। वो शोषण करने वालों से रुपये-पैसे छीनकर ग़रीबों में लूटा देता था।
अपनी बेटी के दूर जाने के डर से वो ब्राह्मण दुल्ला भट्टी से मिलने के लिए जंगल गया। उसने राजा के द्वारा आ रही चिट्ठियों के बारे में उसे बताया और मदद की गुहार लगाई।
दुल्ला भट्टी ने ध्यान से ब्राह्मण की बातें सुनने के बाद कहा, “आप चिंता ना करें। मैं खुद आपकी बेटी का विवाह किसी योग्य वर के साथ करवाऊँगा और उस राजा के भय से आपको मुक्त कर दूँगा।”
इतना कहने के बाद उसने कुछ घंटों में ही एक योग्य ब्राह्मण लड़का ढूंढा और सुंदरी को अपनी बेटी मानकर उसी रात उसका विवाह करवा दिया। विवाह के दौरान कन्यादान भी दुल्ला भट्टी ने ही किया। दुल्ला भट्टी के पास बेटी को विदाई में देने के लिए कुछ नहीं था, तो उसने तिल और शक्कर देकर उसे विदा कर दिया।
सुंदरी के विवाह की जानकारी जैसे ही गंजीबार के राजा तक पहुँची, तो वो गुस्से में जल उठा। उसने तुरंत दुल्ला भट्टी का अंत करने का आदेश अपने इलाके में जारी कर दिया। आदेश मिलते ही गंजीबार के चप्पे-चप्पे में सेना दुल्ला भट्टी को ढूंढने लगी। कुछ लोग दुल्ला भट्टी के ठिकाने भी गए, लेकिन उन्हें वहाँ से मुँह की खाकर वापस आना पड़ा।
एक बड़ी टुकड़ी जब दुल्ला भट्टी के ठिकाने गई, तो उसको भी दुल्ला भट्टी और उसके मित्रों ने घूल चटा दी। बार-बार दुल्ला भट्टी से अपनी सेना को हारते हुए देखकर गंजीबार राजा के होश ठिकाने आ गए।
शाही सेना को बार-बार हार का स्वाद चखाने वाले दुल्ला भट्टी की बढ़ाई करते हुए लोगों ने भांगड़ा और गिद्दा किया। अलाव जलाए और ख़ुशियाँ मनाईं।
महिलाओं ने संगीत गाना शुरू किया, “सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौण विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दे मामे आए हो, मामे चूरी कुट्टी हो, जमींदारा लुट्टी हो, कुड़ी दा लाल दुपट्टा हो, दुल्ले धी ब्याही हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ला भट्टी वाला हो।
कहा जाता है कि लोहड़ी के गीतों के माध्यम से आज भी सुंदरी और दुल्ला भट्टी को ख़ास तौर पर याद किया जाता है। मान्यता है कि दुल्ला भट्टी की जीत के जश्न के रूप में लोहड़ी मनाई जाती है।
कहानी से सीख - वीरों को हमेशा याद रखा जाता है। ग़रीबों और ज़रूरतमंदों का साथ देने वाला इंसान लोगों की नज़रों में मसीहा बन जाता है।